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________________ २७९ मू० पु० वि० प्रश्नोत्तर कल्पना से काम चलाना हो वहाँ शास्त्र की दरकार ही क्यों रखी जाती है समझे न भाई साहिष । मैं तो कहता हूँ कि अब भी आप निर्णय कर सौधर्माचार्य की परम्परा की क्रिया कर स्व-पर का कल्याण करें। प्र०-क्या साधुओं के व्याख्यान में श्रावक सामायिक कर सकता है ? ___उ०-साधुओं के व्याख्यान में श्रावकों को इतर काल की सामायिक करना शास्त्रीय विधान नहीं है। कई लोगों के सामायिक का नियम होता है कि वह अन्य टाइम खर्च नहीं करके दाल के साथ ढोकलो पका लेता है किन्तु व्याख्यान में सामायिक करना एक बैगार निकालना है, बुगलाभक्ति एवं धार्मिकपना का ढोंग बतलाना है। साथ में उपदेशकों की अल्पज्ञता भी है क्योंकि शास्त्र. कारों का स्पष्ट फरमान है कि एक समय में दो काम ( उपयोग) होही नहीं सकता, कारण सामायिक का अर्थ है समभाव से प्रात्मचिन्तवन करना और व्याख्यान का अर्थ है बिनय के साथ उपयोग पूर्वक गुरु के सन्मुख बैठ शास्त्रों का श्रवण कर उनको ठोक समझना। यदि सामायिक में उपयोग है तो व्याख्यान एवं सूत्र और गुरु की आशातना के कारण विराधक होगा, और व्याख्यान में उपयोग रहेगा तो सामायिक का विराधक है अर्थात् सामायिक करना निरर्थक है। यदिसामायिक का अर्थ आश्रवद्वारों को रोकना ही है तो श्राश्रवद्वार व्याख्यान के उपयोग से रुक जाता है फिर सामायिक का अधिक क्या फल हुआ ? यदि फल नहीं है तो अर्थशून्य क्रिया करना विलापात के सिवाय और क्या है ? मेहरबान ! सामायिक ऐसी साधारण वस्तु नहीं है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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