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________________ २७३ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर पर भोग लिया ? यदि भव घटिया एवं पुण्य बढ़ा हो तो आपका कहना मिथ्या हुआ। प्र०-यह तो हम नहीं कह सकते कि भगवान् का महोत्सवादि करने से भव भ्रमण बढ़ता है ? - उ०-फिर तो निशंःक सिद्ध हुआ कि प्रभु पूजा पक्षालादि स्नान करने से भव घटते हैं और क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति होती है। ____ प्र०-यदि धामधूम करने में धर्म होता तो सूरियाभदेव ने नाटक करने की भगवान से आज्ञा मांगी उस समय आज्ञा न देकर मौन क्यों रखी ? ____उ०--नाटक करने में यदि पाप ही होता तो भगवान ने मनाई क्यों नहीं की । इससे यह निश्चय होता है कि आज्ञा नहीं दी वह तो भाषा समिति का रक्षण है पर इन्कार भी तो नहीं किया । कारण इससे देवताओं की भक्ति का भंग भी था । वास्तव में सत्र में भक्तिपूर्वक नाटक का पाठ होने से इसमें भक्तिधर्म का एक अंग है इसलिये भगवान् ने मौन रक्खो, पर मौन स्वीकृित ही समझना चाहिये। यह तो आप सोचिये कि चतुर्थगुणस्थानवर्ती जीवों के व्रत नियम तप संयम तो उदय हैं नहीं और वे तीर्थकर नाम कर्मोपार्जन कर सक्ते हैं तो इसका कारण सिवाय परमेश्वर की भक्ति के और क्या हो सकता है ? प्र०-कहा जाता है कि भगवान महावीर के निर्वाण समय उनकी राशी पर दो हजार वर्षों की स्थितिवाला भस्मगृह आने से अमण संघ की उदय २ पूजा नहीं होगी, वि० सं० १५३० में (१८)-३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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