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मृ० पू० वि० प्रश्नोत्तर
२६६ स्वरुप बतलाया है सत्रह भेदी पूजा' में तीर्थकरों की भक्ति । पैतालीस आगमों को पूजा में श्रागमाराधना इत्यादि पूजा करते हैं कभी पूजा की किताब को उठाकर ध्यान पूर्वक पढ़े तो आपको ज्ञात हो जाय कि हम पूजा किसकी और किस प्रकार करते हैं ।
प्र०-तप संयम से कर्मों का क्षय होना बतलाया है । पर मूर्तिपूजा से कौन से कर्मों का क्षय होता है वहां तो उल्टे कर्म बन्धते हैं ?
उ०-मूर्तिपूजा तप संयम से रहित नहीं है जैसे तप संयम से कर्मों का क्षय होता है वैसे ही मूर्तिपूजा से भी कमों का नाश होता है । जरा पक्षपात के चश्मे को उतार कर देखिये-मूर्तिपूजा में किस किस क्रिया से कौन से २ कमों का क्षय होता है।
(१) चैत्यवन्दनादि भगवान के गुण स्तुति करने से ज्ञानाऽऽवरणीय कर्म का क्षय ।
(२) भगवान के दर्शन करने से दर्शनावरणीय कर्म का नाश ।
(३) प्राण भूत जीव सत्व को करुणा से भसाता वेदनी का क्षय ।
(४) अरिहन्तों के गुणोंका या सिद्धों के गुणों का स्मरण करने से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति और मोहनीय कर्म का क्षय होता है।
(५) प्रभु पूजा में तल्लीन और शुभाऽऽध्यवसाय से उमी १ श्री राजाप्रश्नी सूक्ष २ श्री समवायांगसूत्र तथा श्री नंदीसूत्र में । ३ विविध पूजा संग्रहादि पुस्तकें मुद्रित हो चुकी हैं उनके मंगवा कर एक बार अवश्य पढिये।
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