SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर भव में मोक्ष प्राप्ति होती है । यदि ऐसा न हो तो शुभ गति का श्रायुष्य बन्ध कर क्रमशः ( भवान्तर ) मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। (६) मूर्ति पूजा में अरिहन्तादि का नाम लेने से अशुभ नाम कर्म का नाश । (७) अरिहन्तादि को वन्दन या पूजन करने से नीच गौत्र कर्म का क्षय। (८) मूर्तिपूजा में शक्ति का सदुपयोग और द्रव्यादि का अर्पण करना अन्तराय कर्म को दूर कर देता है। मेहरवान ! परमात्मा की पूजा करने से क्रमशः आठ कर्मों की देश व सर्व से निर्जरा होती है मूर्ति पूजा का आनन्द तो जो लोग पूर्ण भाव-भक्ति और श्रद्धा पूर्वक करते हैं वे ही जानते हैं । जिनके सामने आज ४५० वर्षों से विरोध चल रहा है, अनेक कुयुक्तिएँ लगाई जा रही हैं पर जिनका आत्मा जिनपूजा में रंग गयो है उनका एक प्रदेश भी चलायमान नहीं होता है । समझे न। प्र०-यह समझ में नहीं आता है कि अष्टमी, चतुर्दशी जैसी पर्व तिथियों में श्रावक लोग हरी वनस्पति खाने का त्याग करते हैं जब भगवान् को वे फल-फूल कैसे चढ़ा सकते हैं ? ____उ०-यह तो आपके समझ में आ सकता है कि अष्टमी चतुर्दशी के उपवास ( खाने का त्याग ) करने वाले घर पर आये हुए साधुओं को भिक्षा दे सकते हैं और उनको पुण्य भी होता है। जब आप खाने का त्याग करने पर भी दूसरों को खिलाने में पुण्य समझते हैं तो श्रावकों को पुष्पादि से पूजा करने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy