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और धार्मिक परिवर्तन हुए हैं, वे सिर्फ विजयधर्मसूरिजी के चारित्र के प्रभाव से ही हुए हैं" ।
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आपके व्यक्ति के लिए फ्रेश्व विद्वान डॉक्टर सिल्वनलेवी कहता है “ - मुझे यह कहना होगा कि वे उत्कृष्ट प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक हैं जिनके जैसा (दूसरा) महात्मा शायद ही इस दुनिया में मिलेगा ।"
स्वीडन विद्वान डॉक्टर जॉल चारपेन्टीयर कहते हैं-" वे महा पुरुष सच्चे महापुरुषों के प्रमाणित नमूने थे। जिनमें उच्च से उच्च माननीय आदर्श देखेहैं, जिन श्रादशों में साधुता और विद्वत्ता का सुन्दर सम्मिश्रण है" ।
इस प्रकार अनेक अमेरिकन, फ्रेन्च, जर्मन, इटालियन, - स्वीडन श्रादि देशों के विद्वानों ने आपके प्रति उच्च श्रभिप्राय व्यक्त किए हैं।
डॉ० शारलोटी काडजे ने तो जैन धर्म स्वीकार कर "अणुप्रतादिक ( शावक व्रत) भी ले लिए हैं"
शान्ति निकेतन की विश्व भारती में जैन शिक्षण का सेन्टर स्थापित करने में श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने आपसे ही मदद ली थी।
इत्यादि बहुत से प्रभावान्वित कार्यों को करते हुए हमारे आचार्यश्री वि० सं० १९७९ में शिवपुरी में इस नश्वर देह को छोड़ सदा के लिए स्वर्गवासी हुए ।
अन्त में हम इतना ही कहते हैं कि आप आदर्श थे, उच्च कोटि के विद्वान थे, और जैन समाज में एक प्रबल नवयुग प्रवर्त्तक थे ।
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