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अनेक राजा महाराजाओं और उच्च श्राफिसरों को आपने अपने त्याग मय चारित्र - धर्म पर श्रद्धालु कर दिया । उदयपुर, जोधपुर, इन्दौर, ग्वालियर, दरभंगा और काशी आदि अनेक नगरों के राजा महाराजाओं ने आपका आदर्श उपदेश सुन अपने को धन्य समझा था । राजकोट की "राज कुमार कॉलेज में आपके उदात्त व्याख्यान खूब धाम धूम से हुए थे । बम्बई के “गवर्नर" ने अपने गवर्नमेण्ट हाउस में सन् १९२० में आपको बुला कर अपने आपको पवित्र किया था । अनेक प्रान्तों के कलेक्टर, सूबा और हाकिम आपके भक्त हैं ।
आपश्री ने पश्चात्य विद्वानों को भी उनके साहित्यिक उद्योग में पूर्ण सहायता दी थी। कई एक पञ्चात्य विद्वान् तो आपकी सेवा में यहाँ (भारत में ) या श्राकर आप से पढ़े थे । यूरोप आदि विदेशों के विद्वान आपकी सर्वतोमुखी प्रतिमा पर मुग्ध होकर भगवान् महावीर और बुद्ध से भापका मुक़ाबिला करने लग गये हैं । वहाँ का एक पत्र “The Near East” लिखता है कि - " इस शताब्दी के पूर्व जैनिकम स्थिर था, उसे एक सुधारक विजयधर्मसूरि ने जबर्दस्त उरोजन दिया है, जिसका मुक्ताबिला महावीर और बुद्ध से किया जा सकता है" ।
डॉ० हर्टल, डॉ० जॉली, डॉ० टुच्चस डॉ० शुनिंग डॉ० जोहोन्सेन, डॉ जेकोबी, डॉ० थोमस, डॉ० वेलोनी, डॉ० कोनो आदि २ प्रायः पौन सो विद्वान् आपके भक्त हैं । वहाँ का एक दूसरा पत्र (The Glasgow Herald ) तो यहाँ तक लिखता है :"पिछले कुछ वर्षों से जैनों में जो खास मानसिक, नैतिक
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