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( २६ ) शिष्यों को भेज बौद्धों में जन धर्म का प्रचार करवाया। स्वयं ने भी अनेक स्वतंत्र प्रन्थों का निर्माण कर और समय समय पर समाचार पत्रादि में लेख लिख धर्म की आशाऽतीत उन्नति की विद्या के अविच्छिन्न और स्थायी प्रचार के लिए आप श्री ने:
"श्री वीरतत्व प्रकाशक मण्डल शिवपुरी, महुवा का बालाश्रम, तथा पालीताने का गुरु कुल" जैसे विशाल विद्या केन्द्र स्थापित किए और साथ ही “बम्बई जैन स्वयं सेवक मण्डल" जैसी उदार सामाजिक संस्था को भी जन्म दिया । आगरा के प्रसिद्ध "ज्ञान मन्दिर" जैसे अद्वितीय पुस्तकालय और अनेक गौशालाएँ आदिकी स्थापना करवाने का भी श्रेय आप ही को है। . एक समय के जैन धर्म के कट्टर विरोधी पण्डितों द्वारा श्रीकाशी नरेश के सभापतित्व में "शास्त्र विशारद जैनाचार्य" की पदवी हासिल की। यह वर्तमान प्राचार्यों में पहला ही उदाहरण हैं कि विधर्मी पंडिता और एक नरेश द्वारा पदवी हासिल करना। यह तो आप का योग्य ही सत्कार किया गया है । बंगाल आदि अनेक प्रदेशों में दया रस की अविरल धारा बहा कर अनेक मांस भोजियोंको अपने दया धर्मी बनाया है । जोधपुर में भी जैन साहित्य सम्मेलन" करवा कर आपने देश विदेशों में जैन साहित्यकी महत्ता का डंका बजाया है। आबू के मन्दिरों की आशातना टलवा कर उन्हें पूर्ववत् सर्वोच्चता प्राप्त कराने का श्रेय भी आप ही को मिला था। आप ही के उपदेश से राणकपुर और उपरियाला आदि तीर्थों का उद्धार हुआ था।
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