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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
२५८ होती है तोसरा स्पष्ट बोला भी नहीं जाता है चतुर्थ गन्धी वायुके कारण बीमारी होती है पञ्चम लोगों में धर्म को निंदाका कारण है इतना होने पर भी लाभ कुछ नहीं; एवं दिनभर मुँहपत्ती बांधना, शास्त्राज्ञा के विरुद्ध है।
प्र०-हमने कई पुस्तकों में देखा है कि बाहुबल ब्रह्मो सुन्दरी पांचांडव और भगवान् ऋषभदेव और महावीर के मुंहपर भी मुंहपत्ती बन्धी हुई है क्या यह असत्य है ?
उ०-मैं तो क्या पर इस बात को खास स्थानकवासी समाज भी गलत मानते हैं और सख्त विरोध करते हैं । ऐसे मनकल्पित चित्र बनाने से सत्यता नहीं कही जाती है। आज पुराणे चित्र इतने उपलब्ध हैं कि जिनके अन्दर अनेक श्राचार्यों के चित्र हैं वे सब हाथ में मुंहपत्ती रखते थे। ओसियों के मन्दिर के रंग मण्डप में एक जैनाचार्य की पाषाणमय मूर्ति है वे सामने स्थापना और हाथ में मुँहपत्ती रख व्याख्यान दे रहे हैं। यदि यह मूर्ति श्रीरत्नप्रभसूरि के समय की है तो उसको आज २३९२ वर्ष हुए हैं ऐसे अनेक प्रमाण मिल सकते हैं। पर मुँह पर मुँहपत्ती बन्धने वाले वि० सं० १७०८ के पूर्व का एक भी प्रमाण दे नहीं सकते कि इस समय के पूर्व जैन साधु मुंहपत्ती मुंहपर बान्धते थे। हम तो आज भी यह दावे के साथ कहते हैं कि कोई भी स्थानकवासी तेरहपन्थी अपनी मान्यता को साबित करनेको ऐसा प्रमाण जनता के सामने रखे कि वि० सं० १७०८ पूर्व किसी जैन मुनि ने मुंह पर मुंहपत्तो बांधी थी ? दूसरा यह है कि एक प्रथा से
न देखो मेरो लिखी "क्या जैन तीर्थकर डोराडाल मुंह पर मुंहपत्ती बान्धते थे" नामक किताब ।
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