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________________ २५७ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर बोलने से वायुकाय के जीवों की हिंसा का पाप तो लगता ही होगा? उ०- मुँहपत्ती बोलते समय मुँह के पास रखने के लिये है न कि दिन भर मुँह पर बाँधने के लिये । छदमस्थों का उपयोग न रहने से उड़ता हुआ मक्षिकादि जीव मुंह में न आ पड़े। किसी से वार्तालाप करते थूक न उछल पड़े इसलिये मुंहपत्ती रखना बतलाया है न कि वायुकाय के जीवों की रक्षा के हेतु । यदि ऐसा हो तो तीर्थकर कुछ भी वस्त्र नहीं रखते हैं और वे घन्टों तक देशना दिया करते हैं । आप यह भी नहीं कह सक्ते कि तीर्थंकरों का अतिशय है । कारण ३४ अतिशय में यह अतिशय नहीं है कि तीर्थकर खुले मुंह बोले और उनसे वायुकाय के जीवों की हिंसा न हो कारण तीर्थकर व्याख्यान देते हैं उस समय भी समय-समय वेदनीकर्म का बन्ध होता है इसका कारण वायुकाय की हिंसा ही है । मेहरबानों ! मुंह पर मुंहपत्ती तो क्या पर एक लोहा का पत्र भी चिपका दिया जाय तो भी बोलते समय वायुकाय के जीवों का बचाव नहीं हो सकता है क्योंकि जहाँ थोड़ा ही छिद्र है वहाँ वायुकाय के असंख्य जीव हैं । मुँह तो बहुत लम्बा चौड़ा है पर आंखों के पलकों के बीच भी वायुकाय के जीव भरे हैं और एकबाल चलने पर असंख्य जीवों की हिंसा होती है। इस हिंसा को छदमस्थ तो क्या पर केवली भी रोक नहीं सकते हैं। इतना जरूरी है कि जहाँ तक बन पड़े यत्न करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है । पर दिनभर मुँहपर मुँहपत्ती बन्धने से कितना नुकसान हुआ-अव्वल तो जैन मुनियों के पवित्र वेशको कलंकित किया, दूसरा दिनभर मुंहपत्ती बन्धने से असंख्य त्रस जीवों की उत्पत्ति (१७)-३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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