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________________ २५९ मू०प० वि० प्रश्नोत्तर दूसरी प्रथा चलती है तब उसका खण्डन मण्डन भी उसी समय से चल पड़ता है पर हम अढ़ाई हजार वर्षों का इतिहास एवं साहित्य देखते हैं कि किसी स्थान पर यह नहीं पाया जाता है कि मुंहपत्ती हाथ में रखने का खण्डन मण्डन हो । किन्तु मुंहपत्ती मुंहपर बाँधने की चर्चा केवल वि० सं० १७०८ से ही शुरू होती है इससे सिद्ध होता है कि मुंहपत्ती बान्धने की प्रथा वि० सं० १७०८ में लवजी स्वामी से ही प्रारंभ हुई है। प्र०-फिर क्या पुस्तकों में मूठे ही छपा दिये हैं ? उ०-मताग्रह में मनुष्य क्या नहीं करता है । पुस्तकों में किस किस आधार से छपाई, क्या कोई इसकी प्राचीन मूल कापी बतला सकता है ? आप छापने की क्या बात पूछते हैं कई लोगों ने श्रीकृष्ण के चित्र में बतलाया है कि गोपियें स्नान करती थीं उस समय श्रीकृष्ण उनके वस्त्र उठाके ले गये फिर उन्होंने नग्न गोपियों को अपने पास बुलाया । क्या कोई विद्वान इस बात को सत्य मान सकता है ? क्या श्रीकृष्ण ऐसे थे ? क्या ऐसा चित्र प्रामाणिक माना जासकता है ? नहीं कदापि नहीं। इसी भाँति किसी ने अपने दुराग्रह के वशीभूत हो मन कल्पित चित्र बनाके छपवा दिये हों तो क्या वह सत्य हो सकता है ? कदापि नहीं । हम तो हाथ में मुंहपत्ती रखने वाले हैं परन्तु पहले मुंहपर बांधने वालों को तो पूछो कि वे उन चित्रों का क्यों विरोध करते हैं। सब से निकट का प्रमाण तो यह है कि लौकाशाहकी परम्परा के यति श्राज पर्यन्त मुँहपत्ती हाथ में रखते हैं और मुंहपर बाँधने का घोर विरोध करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि लौंकाशाह के बाद मुंहपर दिनभर मुँहपत्ती बांधने की प्रथा शुरू हुई है अर्थात् हाथ में मुंह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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