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________________ २५४ मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर . (३) श्री स्थापनायांग सूत्र चतुर्थ स्थानक में नन्दीश्वर द्वीप में ५२ मन्दिरों का अधिकार है। . (४) श्री समवायांग सूत्र के सतरहवें समवाय में जंघाधारण विद्याचारण मुनियों के यात्रा वर्णन का उल्लेख है। (५) श्री भगवती सूत्र शतका३ उ० १ के चमरेन्द्रके अधिकार में मूर्ति का शरणा कहा है। (६) श्री ज्ञात सूत्र अध्याय ८ में श्री अरिहन्तों की भक्ति करने से तीर्थकर गोत्र बन्धता है तथा अध्याय १६ में द्रौपदी महासती ने १७ भेद से पूजा की है। (७) श्री उपासक दशांग सूत्र में आनन्दाधिकार में जैन मूर्ति का उल्लेख है। (८.९ ) श्री अन्तगढ़ और अनुत्तरोवाई सूत्र में द्वारिकादि नगरियों के अधिकार में उत्पातिक सूत्र के सदृश जैन मन्दिरों का उल्लेख है। (१०) प्रश्न व्याकरण सूत्र तीसरे संवरद्वारमें जिन प्रतिमा की व यावच्च ( रक्षण) कम निजरा के हेतु करना बतलाया है। (११) विपाक सूत्र में सुबाहु आदि ने तुंगिया नगरी के श्रावकों के समान जिनप्रतिमा पूजी है। (१२) उत्पातिक सूत्र में चम्पा नगरी के मुहल्ले २ जैनमंदिर तथा अंबड़ श्रावक ने प्रतिमा का वन्दन करने की प्रतिज्ञा ली थी। (१३) राजप्रश्नी सूत्र में सूरियामदेव ने सत्रह प्रकार से जिन प्रतिमाओं की पूजा की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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