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________________ २५३ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर उ.-हम ४५ आगम के अलावा जितने सूत्र और पूर्वाचार्य रचित प्रन्थादि हैं; सब मानते हैं परयह कभी आपने सुना है कि हमारे किसी विद्वान ने यह कहा है कि अमुक ग्रंथ को हम नहीं मानते । अब४५ आगम मानने का तात्पर्य भी सुन लीजिये। नैन साधु आगम पढ़ते हैं तब उनको योगद्वाहन ( तपश्चर्या) करना पड़ता है । मजबूत संहनन वाले सब भागमों के योगद्वाहन कर सकते थे पर इस समय ऐसे संहनन नहीं है कि लगातार वर्षों तक तपश्चर्या कर सकें इस लिये योगद्वाहन ४५ आगम का ही रखा है पर इससे यह नहीं कहा जा सकती कि जैन ४५ पागम के अलावा शेष सूत्र प्रन्थ नहीं मानते हैं। प्र०-क्या ३२ सूत्रों में मूर्तिपूजा करने का उल्लेख है ? उ.-यह तो हमने पहले से ही कह दिया था कि ऐसा कोई सूत्र नहीं है कि जिसमें मूर्ति का उल्लेख न हो । कदाचित् आपको किसी ने भ्रम डाल दिया हो कि ३२ सूत्रों में मूर्ति का बयान नहीं है तो सुन लीजिये । (१) श्री आचारांग सूत्र दूसरा श्रुतस्कन्ध पन्द्रहवें अध्ययन में सम्यक्त्व की प्रशस्त भावना में शत्रुजय गिरनारादि तीर्थों की यात्रा करना लिखा है (भद्रबाहु स्वामिकृत नियुक्ति) (२) श्री सूत्रकृतांग सूत्र दूसरा श्रुतस्कन्ध छटे अध्ययन में अभयकुमार ने आर्द्रकुमार के लिये जिनप्रतिमा भेजी जिसके दर्शन से उसको जाति स्मरण ज्ञान हुआ । (शी० टी०) इन ३२ सूत्रों के मूर्तिपूजो विषयक पाठ देखो मेरा लिखा 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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