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मू० पु० वि० प्रश्नोत्तर
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(३ ) जिस चौबीसतीर्थंकरों को आप परमपूजनीय मानते हो उनका विस्तार पूर्वक जीवन किस मूल सूत्र में है ?
(४) इस भांति चक्रवर्ती बलदेव, बासुदेव, प्रतिबासुदेवादि का जीवन किस मूल सूत्र में है ?
(५) सामायिक प्रतिक्रमण व्रतोचारण अन्तिम आलोचना मृतसाधु के पीछे करने योग्य क्रियादि का विधि विधान किस मूल सूत्र में है ?
५ ६ ) बत्तीस मूल सूत्रों के मूल पाठ में एक दूसरे से परस्पर विरोव के अनेक पाठ हैं । उसका समाधान किस मूल सूत्रों से कर सकोगे ?
(७) ऐसी सैंकड़ों बातें हैं कि ३२ सूत्रों के मूलपाठ से जिनका निर्णय हो ही नहीं सकता है देखो हमारी लिखी प्रश्नमाला नामक किताब । पञ्चाङ्गो और पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों के बिना न तो स्थानकवासियों का काम चलता है और न तेरहपन्थियों का । स्था० पू० जवाहरलालजी ने 'सद्धर्ममण्डन' नामक ग्रन्थ तेरहपन्थियों के खण्डन में बनाया है जिसमें टीका चुणि भाष्य को प्रमाणिक मान अपनी पुष्टि में अनेक स्थानों में प्रमाण दिया है। इसी भांति तेरहपंथियों ने अपने भ्रमविध्वंसन नामक ग्रंथ में स्थानकवासियों का मतखंडन के विषय में अनेक स्थानों पर टीका चूर्णि भाष्य को प्रमाणिक मान प्रमाण दिया है पर यह कितनी अज्ञानता एवं कृतघ्नता है कि जिन ग्रन्थों से अपना इष्ट सिद्ध करना और काम पड़ने पर उन्हीं ग्रन्थों का अनादर करना इसके सिवाय वज़पाप हो क्या होता है ?
प्र०-आप भी तो ४५ आगम मानते हो?
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