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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर २४८ के यहां जाते हैं पर मूत्ति मानने वाले क्यों जाते हैं । ___उ०-जैन लोग जैन देवी देवताओं के सिवाय किसी अन्य देव देवियों की मान्यता व पूजा नहीं करते थे विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी तक मारवाड़ के तमाम जैनों का एक ही मूर्ति मानने का यम था वहीं तक जैन अपनी प्रतिज्ञा पर भडिग थे बाद मूर्ति मानने नहीं मानने का भेद पड़ा। कई अज्ञ लोगों ने जैन मंदिरों को छोड़ा उस हालत में वे अन्य देव देवियों को जाकर शिर झुकाने लगे। और दोनों के जाति-व्यवहार एक (शामिल) होने से मूर्ति मानने वालों की लड़कियों मूर्ति नहीं मानने वालों को ब्याही और मूर्ति नहीं मानने वालों की बेटियों, मूर्ति मानने वालों को दी। इस हालत में जैनियों के घरों में आई हुई स्थानकवासियों की बेटियों अपने पीहर के संस्कारों के कारण अन्य देव देवियों को मानने लगी इससे यह प्रवृत्ति उभयपक्ष में चल पड़ी तथापि जो पक्के जैन हैं वे तो आज भी अपनी प्रतिज्ञा पर डटे हुये हैं जो अपवाद हैं वह भी स्थानकवासियों की प्रवृत्ति का ही फल है तेरहपंथी तो इनसे भी नीचे गिरे हुए हैं। ___ प्र-हमारे कई साधु तो कहते हैं कि मूर्ति नहीं मानना लौकाशाह से चला है । तब कई कहते हैं कि हमतो महावीर की वंश परम्परा से चले आते हैं इसके विषय में आपकी क्या मान्यता है ? उ०-जैनमूर्ति नहीं मानना यह मत लौकाशाह से चला यह वास्तव में ठीक ही है । इस मान्यता को हाल ही में स्था. मुनि शोभागचंदजी ने जैन प्रकाश पत्र में "धर्मप्राण लौकाशाह नाम को लेखमाला में भली भाँति सिद्ध कर दिया है" कि भग Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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