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________________ २४७ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर आदि तप करें तो मन्दिर, आपद् समय अधिष्ठायक देव को प्रसन्न करें तो मंदिर, संघ पूजा करें तो मंदिर, संघ पूजा देवें तो मंदिर, दीपमालकादि पर्व दिनों में मंदिर, पर्दूषणों में मंदिर तीर्थ यात्रा में मन्दिर, इत्यादि मन्दिर बिना हमारा काम नहीं चलता है । भला वैष्णवों के रेवाड़ी, मुसलमानों के ताजिया, तो क्या जैनों के कुछ नहीं है । जैनियों के पूर्वज इतने कमजोर थे कि दुनियां की धर्म धोड़ से वे पीछे हैं ? नहीं जब इतिहास देखते हैं तो यह स्पष्ट पाया जाता है कि उन लोगों ने खास कर जैनियों का ही अनुकरण किया है शास्त्रीय प्रमाण से देखा जाय तो सम्राट् कोणिक और दर्शनभद्र ने भगवान वन्दन के समय वरघोड़ा चढ़ाया था वह ठाठ मानों एक इन्द्र की सवारी ही थी। इस हालत में जैनियों के खासाजी (वरघोड़ा) होना अनुचित है ? नहीं किन्तु अवश्य होना ही चाहिये । यदि जैनों के वरघोड़ा न हो तो बतलाइये हम और हमारे बाल-बच्चे किस महोत्सव में जावें ? । महाराज ! जिन लोगों ने जैनों को जैनमन्दिर छुड़वाया है उन्होंने इतना मिथ्यात्व बढ़ाया है कि आज जैनियों के घरों में जितने व्रत वरतोलिये होते हैं वे सब मिथ्यात्वियों के ही हैं। हिन्दू देवी देवता को तो क्या ? पर मुसलमानों के पीर पैगम्बर और मसजिदादि की मान्यता पूजन से भी जैन बच नहीं सके हैं, क्या यह दुख की बात नहीं है ? क्या यह आपकी कृपा (?) का ही फल नहीं है ? । जहाँ संगठन और एकता का आन्दोलन होरहा हो वहां आप हमको किस कोटि में रखना चाहते हैं ? ...प्र०-भला ! मूर्ति नहीं मानने वाले तो अन्य देवी देवतामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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