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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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भोजन करवाने में महा पाप समझते हैं क्योंकि वह भोजन करने के बाद प्रारंभादि करेगा यह सब पाप भोजन करानेवाले को लग जाता है जब पूज्यजी के मृत शरीर के ऊपर हजारों रुपयों की उछाल की वे कई अनार्य व मुसलमानों के हाथ आये वे बकरा मारेंगे, उनका पाप पूज्यजी को ही लगेगा या उछाल करने वालों कों। फिर भी इस आरम्भ और महापाप के कार्य में भी अपने धर्म की उन्नति समझना क्या बतलाता है इसको जरा सोचें समझें । कहने का तात्पर्य यह है कि आरम्भ आडम्बर तो समयाऽनुसार आज सर्वत्र बढ़ रहा है फिर मन्दिर मूर्तियों पर ही कटाक्ष क्यों ? पहिले घर की आग बुझा लो बाद में दूसरों की बुझाना उचित है । मन्दिरों में तो सेवा, पूजा, भक्ति, वरघोड़ा आदि सदैव से होते ही आए हैं। पर मन्दिर नहीं मानने वाले और रूखी दया दया की पुकार करनेवालों में मन्दिरों से भी कई गुणा विशेष आरंभ आडम्बर बढ़ गया है, और न जाने भविष्य में फिर कितना बढ़ेगा, क्या यह जमाने का प्रभाव नहीं है ?
प्र० - यह तो ठीक परन्तु यदि लौंकाशाह का कहना सत्य नहीं होता तो उसका " मत" कैसे चल गया ? |
उ०- भद्रिक जनता में मत का चल पड़ना कौन बड़ी बात है । केवल मत चल जाने से ही उनकी सत्यता नहीं समझी जा सकती। क्योंकि यदि मत चलनेका प्रमाण सत्यता ही है तो दया, दान की जड़ काटने वाले तेरह पंथियों को भी सच्चा मान लो कारण मत तो उनका भी चल गया । हिन्दू धर्म में आज ७०० मत ( पन्थ) हैं, जिसमें एक कुण्डापन्थियों का भी मत है क्या यह
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