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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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को किसने सिखाया ? साधु हमेशा गुप्त तप और पारणा करते हैं पर आज तो हिंसा के पैगम्बर तपस्या के प्रारम्भ में ही पत्रों द्वारा जाहिर करते हैं कि अमुक स्वामीजी ने इतने उपवास किये अमुक दिन पारणा होगा इस सुअवसर पर सकुटुम्ब पधार कर - शासन शोभा बढ़ावें । इस पारणा पर सैंकड़ों हजारों भावुक एकत्र हो बड़ा आरंभसारंभ कर स्वामीजोका माल लूट जाते हैं। इसका नाम धामधूम है या भक्ति की ओट में आरम्भ है ? ऐसे अनेक कार्य हैं कि जिनमें मूर्तिपूजकों से कई गुणा धामधूम और रंभ होता है जरा आंख उठा के देखो आप पर भी जमाने ने कैसा प्रभाव डाला है ?
प्र० - इसको तो हम संसारखाता समझते हैं ? उ०- क्या दर्शनार्थी लोग वारात या मुकाण सर ( मरशान्ते, समवेदना सुचक मिलन) पर आए हैं कि जिसे श्राप संसार खाता बतलाते हैं । हम तो श्रापसे यह पूछते हैं कि यदि पूज्यजी का चतुर्मास न होता तो यह आरंभ होता या नहीं ? यदि नहीं होता तो अब इसमें पूज्यजी निमित्त कारण हुए या नहीं ? आप अपने स्वधर्मी भाइयों का स्वागत करते हो, इसमें पुण्य मानते हो या पाप ? | यदि पाप मानते हो तो इसका पश्चात्ताप कर कहना चाहिये कि आज हम पाप में डूब गये, फिर तो तेरहपन्थी और आपकी श्रद्धा में कोई भेद ही नहीं है और पुण्य समझते हो तो मन्दिरों की सेवा पूजा और आपके इस कृत्य में कोई फरक नहीं है । फिर गुड़ खाना और गुलगुलों से परहेज रखना यह आपकी कोरी प्रवश्वना ( माया- कपटता) नहीं तो और क्या है ? | हमने नो यह चतुर्मास का जिक्र किया है, यह तो मात्र एक उदाहरण
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