________________
२३७
मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
धामधूम, और प्रारंभ बहुत बढा दिया, इस हालत में हम लोगों ने मंदिरों को बिलकुल छोड़ दिया ? ____उ०-शिर पर यदि बाल बढ़ जाय तो क्या बालों के बदले शिर को ही उड़ा देना योग्य है ? यदि नहीं तो फिर मन्दिरों में श्रारम्भ बढ़ गया तो आरम्भ और धाम-धूम नहीं करने का उपदेश देना था, पर मन्दिर मूर्तियों का ही इनके बदले निषेध करना तो बालों के बदले शिर काटना ही है फिर भी जब शीतकाल आता है तब सभी जन विशेष वस्त्र धारण करते हैं । इस प्रकार जब
आडम्बर का काल आया तब धामधूम (विशेष भक्ति ) बढ़ गई तो क्या बुरा हुआ ? और यह अनुचित हो था तो इसे उपदेशों द्वारा दूर करना था नकि मन्दिरों को छोड़ना । धामधूम का जमाने ने केवल मन्दिरों पर ही नहीं परन्तु सब वस्तु पर समान भाव से प्रभाव डाला है। आप स्वयं सोचें कि प्रारम्भसे डरने वाले लोगों के पूज्यजी आदि स्वयं बड़े बड़े शहरों में चतुर्मास करते हैं, तो उनके दर्शनार्थी हजारों भावुक आते हैं। उनके लिये 'चन्दा कर चाका खोला जाता है । रसोईये प्राय: विधर्मी ही होते हैं, नीलण, फूलण और कीड़ों वाले छांणे ( कण्डे) और लकड़ियें जलाते हैं। पयूषणों में खास धर्माऽऽराधन के दिनों में बड़ी २ भट्टियें जलाई जाती हैं । दो दो तीन तीन मण चावल पकाते हैं । जिनका गरमा गरम (अत्युषण ) जल भूमि पर डाला जाता है जिससे असंख्य प्राणी मरते हैं, बताइये क्या आपका यही परम पु त अहिंसा धर्म है ? हमारे यहां मन्दिरों में तो एकाध कलश ठंडा जल, और एकाध धूपबत्ती काम में ली जाती हैं उसे प्रारम्भ २ के नाम से पुकारते हो और घर को पता ही नहीं । यह अनूठा न्याय आप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org