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मू. पू. वि. प्रश्नोत्तर
२३६ बताते है । देखिये (१) उड़ीसा प्रांत की हस्तीगुफा का शिलालेख जिसमे महामेघवाहन, चक्रवर्ती, राजा खारबेल, जिसने "अपने पूर्वजों के समय मगध के रोजा नंद, भगवान् ऋषभदेव की जो मूर्ति ले गए थे उसे वापिस ला आचार्यसुस्थीसूरि से प्रतिष्ठा कराई। यह मूर्ति राजा श्रीणिक ने बनाई थी। (२) विशाला नगरी की खुदाई से जो मूर्तियों के खण्डहर निकले हैं, उन्हें शिल्पशास्त्रियों ने २२०० वर्ष के प्राचीन स्वीकार किये हैं। और (३) मथुरा के कंकाली टोला को अंग्रेजों ने खुदवाया, उसमें जैन बौद्ध और हिंदू मंदिर भर्तियों के प्रचुरता से भग्नाऽवशेष प्राप्त हुए हैं, उनपर शिलाक्षरन्यास भी अंकित हैं, जिनका समय विक्रम पूर्व दो तीन शताब्दी का है । आबू के पास मुण्डस्थल नामका तीर्थ है वहाँ का शिलालेख प्रगट करता है कि वहां महावीर अपने छदमस्थपने के सातवें वर्ष पधारे थे उसी समय वहाँ पर राजा नन्दीवर्धन ने मंदिर बनाया (५) कच्छ भद्रेश्वर में वीरात् २३ वर्ष वाद का मंदिर है जिसका जीर्णोद्वार दानवीर जगडुशाह ने करायो । (६) ओशियों और कोरण्टा के मंदिर वीरात् ७० वर्ष बाद के हैं जो आज भी विद्यमान हैं। क्या इस ऐतिहासिक युग में कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि मंदिर बनाने की प्रारंभिकता को केवल १००० वर्ष ही हुए हैं ? कदापि नहीं। यदि आपको इनसे भी विशेष प्रमाण देखने की इच्छा हो तो, देखो मेरी लिखी "मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक ।
प्र---यह भी सुना जाता है कि मंदिर मार्गियों ने मंदिरों में
विस्तार देखो प्रकरण पांचवाँ ।
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