________________
२३५
मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर किन्तु वे तो मूर्ति में प्रभुगुण अारोपण कर एकाप्रचित्त से उसी प्रभु की उपासना व प्रार्थना करते हैं। "नमोत्थुणं" कहकर परमात्मा के गुणों का स्मरण करते हैं। पर सूत्रों के पृष्ट भी जड़ हैं, आप उन जड़ पदार्थ से क्या ज्ञान हासिल कर सकते हैं ? । यदि कर सकते हैं तो यह भी स्वतः समझ लीजिए। . प्र०-मन्दिर तो बारहवर्षी दुष्काल में बने हैं, अतएव यह प्रवृत्ति नई है ।
उ०-बारहवर्षी दुष्काल कब पड़ा था आपको यह मालूम है ?
प्र०-सुना जाता है कि आज से १००० वर्ष पहले बारहवर्षी काल पड़ा था। ___उ०-सुना हुआ ही कहते हो या स्वयं शोध खोज करके कहते हो । महरवान ! ज़रा सुनें और सोचें, देखिये पहला बारह वर्षी काल चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु स्वामी के समय पड़ा था, जिसे आज २३०० वर्ष के करीब होते हैं। और दूसरा बारहवर्षी काल दशपूर्वधर वनस्वामी के समय में पड़ा, इसे करीब १९०० वर्ष होते हैं। आपके मताऽनुसार बारहवर्षी दुकाल में ही मन्दिर बने यह मान लिया जाय तो पूर्वधर श्रुत केवलियों के शासन में मन्दिर बने और उसका अनुकरण २३०० वर्षों तक धर्मधुरंधर आचार्यों ने किया और करते हैं तो फिर लौंकाशाह को कितना ज्ञान था कि, उन्होंने मंदिर का खण्डन किया और उन्होंने पूर्व प्राचार्यों का अपमान किया। मित्रों मंदिरों की प्राचीनता सूत्रों में तो हैं ही। पर आज विद्वान लोग इतिहास के अन्वेषण से मन्दिरों के अस्तित्व को प्रभु महावीर के समय विद्यमान होना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org