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मू० पू० वि० प्रश्नोचर
उ०-आप वैरागी को दीक्षा देते हैं दीक्षा लेने के पूर्व तो उसे कोई वन्दना नहीं करता और दीक्षा लेने के बाद उसी वक्त वन्दना करने लग जाते हो तो क्या दीक्षा आकाश में घूमती थी, जो एकदम वैरागी के शरीर में घुस गई कि वह वन्दनीक बन गया ?
प्र०-उनको ( वैरागी को ) तो सामायिक का पाठ सुनाया जाता है इससे वे वन्दनीय हो जाते हैं।
उ०-इसी तरह मूर्ति की भी मंत्रों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा को जाती है जिससे वह भी वन्दनीय हो जाती है ।
प्र-सिलावट के घर पर रही, नई मूर्ति की आप आशातना नहीं टालते और मन्दिर में आने पर उसकी आशातना टालते हो इसका क्या कारण है ? ___उ०-गृहस्थों के मकान पर जो लकड़ा का पाट पड़ा रहता है उस पर श्राप भोजन करते हैं, बैठते हैं, एवं अवसर पर जूता भी रख देते हैं परन्तु जब वही पाट साधु अपने सोने के लिए ले गए हों तो श्राप उसकी आशानता टालते हो। यदि अनुपयोग आशातना हो भी गई हो, तो प्रायश्चित लेते हो। इसका क्या रहस्य है ? । जो कारण तुम्हारे यहाँ है वह हमारे भी समझ लीजिए। मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने से उसमें दैवी गुणों का प्रादुर्भाव होता है।
प्र-पाषाण मूर्ति तो एकेन्द्रिय होती है उसकी, पाँचेन्द्रिय मनुष्य पूजन कर के क्या लाभ उठा सकते हैं ? ___ उ०-ऐसा कोई मनुष्य नहीं है कि वह पत्थर की उपासना करता हो कि हे पाषाण ! मुझे संसार सागर से पार लगाइए,
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