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________________ २३३ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर आप ऐसा प्रश्न करते हैं नहीं तो माला तो आप भी हमेशा फेरते हो और उससे आत्म-कल्याण की भावना रखते हो, ऐसे विधवा भी यदि हाथ में माला ले अपने पति के नाम को रटे तो क्या उस स्मरण मात्र से उसका पति उस विधवा की इच्छाएँ पूर्ण कर सकता है ? कदापि नहीं | तब माला लेना और फेरना भी व्यर्थ हुआ । सज्जनों नाम लेने में तो एक नाम निक्षेप ही है पर मूर्ति में नाम और स्थापन दोनों निक्षेप विद्यमान हैं, इसलिये नाम रटने की अपेक्षा मूर्ति की उपासना अधिक फलदायक है, क्योंकि मूर्ति में स्थापना के साथ नाम भी आ जाता है । जैसे आप किसी को यूरोप की भौगोलिक स्थिति मुँहजबानी समझाते हैं परन्तु समझाने वाले के हृदय में उस वक्त यूरोप का हूबहू चित्र चित्त में नहीं खिंच सकेगा जैसा कि आप यूरोप का लिखित मानचित्र (नशा) उसके सामने रख उसे यूरोप की भौगोलिक स्थिति का परिचय करा सकेंगे । इससे सिद्ध होता है कि केवल नाम के रटने से मूर्ति को देख कर ही नाम का रटना विशेष लाभदायक है । - जब आप मूर्ति को पूजते हो तब मूर्ति के बनाने वाले को क्यों नहीं पूजते ? प्र० " उ०- आप अपने पूज्यजी को वन्दना करते हो, परन्तु उसके गृहस्थावस्था के माता पिता जिन्होंने उनका शरीर गढ़ा है वन्दना क्यों नहीं करते हों ? पूज्यजी से तो उनको पैदा करने वाले आपके मतानुसार अधिक ही होंगे। क्यों ठोक है न । प्र० - मूर्ति सिलावट के यहां रहती है तब तक आप उसे नहीं पूजते और मन्दिर में प्रतिष्ठित होने के बाद उसे पूजते हो इसका क्या हेतु है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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