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________________ २२५ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर का नसीब हुआ हो तो भले ही वे थोड़े काल के लिये मूर्त्ति पूजा से बच सकते हैं, अन्यथा मूर्त्ति-पूजन जरूर करना ही होगा प्र० – देवताओं में जाकर मूर्ति-पूजन करना पड़ेगा ही, इसका श्रापके पास क्या प्रमाण है ? उ०- देवताओं का कुल जैन है और वे उत्पन्न होते ही यही विचार करते हैं कि मुझे पहले क्या करना और पीछे क्या करमा और पहले व पीछे क्या करने से हित, सुख कल्याग और मोक्ष का कारण होगा इसके उत्तर में यह ही कहा है कि पहले पीछे मूर्ति का पूजन करना ही मोक्ष का कारण है देखो राजप्रश्नी और जीवाभिगम सूत्र का सूत्र १ पाठ । मूल प्र० - कई मेरे मित्र इस प्रकार कहते हैं ? परचो नहीं पूरे पारसनाथजी सब भूंठी बातें । प० उ०- - उत्तर में यह कहा जा सकता है किपरचो पूरे है पार्श्वनाथजी मुक्ति के दाता । प० बिन परचे किसको नहीं पूजे, यह है लोक व्यवहार ॥ परचो न माने गावे ध्यावे, वे ही असल गँवार हो मुक्ति । प्रत्येक परचो पार्श्वनाथ को, जीव असंख्य तारा ॥ -- श्रद्धा भक्ति इष्ट जिन्हों के, भव भव सुख अपारा हो मु० । यह ठीक है क्योंकि परचा का अर्थ लाभ पहुँचाना है अर्थात मनोकामना सिद्ध करना, जो भव्यात्मा प्रभु पार्श्वनाथ की सेवा, पूजा, भक्ति करते हैं उन्हें पार्श्वनाथजी अवश्य परचा दिया करते हैं, ( उसे लाभ पहुँचाया करते हैं ) उसकी मनोकामना सिद्ध १ सूत्र का मूल पाठ देखो सू० पू० का इ० पृष्ट ६१ (१५) - ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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