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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर बिन दर्शन व्रतों को वेचो, वटे न पुण छदाम रे क्यों। मनुष्य भव में या देवभव में, पूजा करनी पड़सी । यदि नरक में जाना चाहे, वे ही पूजा से वचसीरे क्या० ।
समझ गये न । क्या और कुछ पूछना है। प्र०-जिन प्रतिमा को पूजकर कोई मुक्ति को गया है ?
उ.-सिद्धों में ऐसा कोई जीव हो नहीं है जो बिना जिन प्रतिमा-पूजन के मोक्ष को गया हो, चाहे वे मनुष्य के भव में या चाहे देवताओं के भव में हो परन्तु वे मोक्षार्थ मूर्तिपूजक अवश्य ही है । पर कृपया आप यह बतलावें कि कोई श्रावक दान देकर या शील पालकर मोक्ष गया है ? नहीं। इतना ही क्यों मोक्ष तो तेरहवाँ गुणस्थान वृति संयोग केवली की भी नहीं। वह भी चौदहवें गुणस्थान अयोग केवली होता है तब मोक्ष होती है तब श्रावक तो पाँचवें गुणस्थान में है उस की तो मोक्ष हो ही कैसे । यदि यह कहो कि दानशील मोक्ष का कारण है तो उससे ही पहिले मूर्तिपूजा भी मोक्ष का अवश्य कारण हैं बल्कि मूर्तिपूजा व्रतों के पूर्व समकित की करनी है इसके बिना श्रावक की कोई भी क्रिया किसी हिसाब में नहीं है, समझे न भाई साहिब । __ प्र०-जब तो जो मोक्ष का अभिलाषी (मुमुक्ष ) हो उसे जरूर मत्रि-पूजन करना ही चाहिये ?
उ०-इसमें क्या सन्देह है ? क्योंकि आज जो मर्ति नहीं पूजते हैं अथवा नहीं मानते हैं, उन्हें भी यहाँ पर नहीं तो देवताओं में जा कर तो जरूर सर्वप्रथम मर्ति पूजन करना ही पड़ेगा, हो ! यदि मर्ति-द्वेष के पाप के कारण उन्हें नरक या तिर्यग-योनि
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