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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
अज्ञता का दोष दूसरों पर डालना। सजनों! जरा सत्रों के रहस्य को तो समझो, ऐसे शब्दों से कितनी हँसी और कर्मबन्धन होता है। हमारे सिद्ध मुक्ति पाकर वापिस नहीं आये हैं। पर मोक्ष-प्राप्त सिद्धों की प्रामाणिकता इन मूर्तियों द्वारा बताई गई हैं कि जो सिद्ध मुक्त हो गए हैं उनकी ये मूर्तिएँ हैं। पर मूर्ति नहीं मानने वाले अपने सिद्ध होने का क्या सबूत दे सकते हैं कि वे किस अवस्था में सिद्ध हुए हैं।
प्र०--यदि ये मूर्तिएँ अरिहंतों की हैं तो इन पर कच्चा पानी क्यों डालते हो ? ____उ०-अरे भाई ! श्राप इन पूज्य पुरुषों की जन्मादि क्रियाओं की भक्ति सूत्र पढ़ कर बतलाते हो कि अरिहन्तों का जन्म होता है तब इन्द्रादि देव मरु पर लेजाके हजारों कलशों द्वारा प्रभु का स्नात्र करते हैं। वे इन्द्रादि देव सम्यग्दृष्टि, महाविवेकी, तीनज्ञानसंयुक्त, भगवान के परम भक्त और एकावतारी थे इत्यादि तब हम लोग यह सब करके बतलाते हैं इसमें अनुचित क्या है यह दोनों के अभिप्राय रूप रूपान्तर मूर्ति पूजा का ही द्योतक है और पूज्य पुरुषों की पूजा संसार मात्र कर रहा है।
प्र०-कई लोग कहते हैं किमुक्ति नहीं मिलसी प्रतिमा पूजियों, क्यों झोड़ मचावो ।।
इसका उत्तर आप क्या फरमाते हो ? ___उ०—जैसा प्रश्न वैसा ही उत्तर लीजियेप्रतिमा पूजा बिन मुक्ति नहीं मिले, क्यों कष्ट उठाओ । प्रभु पूजा से दर्शन शुद्धि, दर्शन मोक्ष का धाम ॥
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