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मू० पू० वि० प्रश्नोतर
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साबूती यह मूर्तियाँ बतला रही हैं क्योंकि उन्हीं की मुद्रा में ही निस्पृहता फलक रही है । क्या इसके अलावा आपके पास कोई ऐतिहासिक साधन है कि आप अपने देव की वीतरागिता - बतला सको ? अच्छा ! हम थोड़ा सा आपसे भी पूछ लेते हैं कि जब वीतराग की वाणी के शास्त्रों में पैंतीस गुण कहे हैं तो फिर आपके सूत्रों को कीड़े कैसे खा जाते हैं ? तथा यवनों ने उन्हें जला कैसे दिया ? और चोर उन्हें चोर के कैसे ले जाते हैं ? क्या इससे सूत्रों का महत्व घटजाता है ? - यदि नहीं तो इसी भांति मूर्तियों का भी समझ लीजिये कि मूर्ति और सूत्र ये दोनों स्थापना निक्षेप है ।
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मित्रों ! ये कुतकें केवल पक्षपात से पैदा हुई हैं यदि समदृष्टि से देखा जाय तब तो यहो निश्चय ठहरता है कि ये मूर्तियें और सूत्र, जीवों के कल्याण करने में निमित्त कारण मात्र हैं । इनकी सेवा, भक्ति, पठन, श्रवणादि से परिणामों की शुद्धता, निर्मलता होती है । यही आत्मा का विकास है, इसलिए मूर्तिएँ और सूत्र वन्दनीय एवं पूजनीय है ।
प्र० - प्रतिमा पूजने ही से मोक्ष होती हो तो फिर तप, संयम आदि कष्टट-क्रिया की क्या जरूरत है ?
उ०- प्रतिमा पुजन मोक्ष का कारण है इसमें कोई सन्देह नहीं हैं फिर भी यदि आपका यह दुराग्रह है तो स्वयं बताइये कि तुम दानशील से मोक्ष मानते हो, वह क्यों ? कारण यदि दान-शील से ही तुम्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है तो फिर दीक्षा लेने का कष्ट क्यों किया जाता है ? परन्तु बन्धुओं ! यह ऐसा नहीं हैयद्यपि दानशील एवं मूर्तिपूजन ये सब मोक्ष के कारण हैं फिर
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