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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर २१८ है। आप पुस्तक पढ़ने की अपेक्षा एक नकशा सामने रक्खो जिससे आपको तमाम दुनियाँ का यथार्थ ज्ञान हो जायगा। प्र०-श्राप जिन-प्रतिमा को जिन-सारखी कहते हो क्या यह मिथ्या नहीं है । ___ उ०-आप ही बतलाइये यदि हम जिन-प्रतिमा को जिनसारखी नहीं कहें तो फिर क्या कहें ! उन्हें किन के सारखी कहें। क्योंकि यह आकृति सिवाय जिनके और किसी के सदृश मिलती नहीं है जिससे उनकी इन्हें उपमा दें। जिन प्रतिमाको जिनसारखी हम ही नहीं कहते हैं किन्तु खास सूत्रों के मूल पाठ में भी उन्हें जिन-सारखी कहा है, जैसे-जीवाभिगम सूत्र में यह लिखा है कि “धूवदाउणं जिनवराणं" अर्थात् धूप दिया जिनराज को, अब आप विचार करें कि देवताओं के भवनों में जिन-प्रतिमा के सिवाय कौन से जिनराज हैं ? अर्थात् शास्त्रकारों ने जिन प्रतिमा को ही जिनराज कहा है। समवसरण में तीर्थङ्करों के तीन दिशा में जिन प्रतिमा रखते हैं और चतुर्विध श्रीसंघ उनको जिनवर सदृश समम वन्दन भक्ति करते हैं यदि हम आपके फोटू को आपके जैसा कहें तो कौनसा अनुचित हुआ ? यदि नहीं तो फिर जिनरान की प्रतिमा को जिन-सारखी कहने ही में क्या दोष है ? यदि कुछ नहीं तो फिर कहना ही चाहिए। प्र०-यदि मूर्ति जिनसारखी हैं तो उसमें कितने अतिशय हैं ? । उ०-जितने अतिशय सिद्धों में हैं उतने ही मूर्ति में हैं, क्योंकि मूर्ति भी तो उन्हीं सिद्धों ही की है। अच्छा अब आप बतलाइये कि भगवान् की वाणो के पैंतीस गुण हैं, आपके सूत्रों में कितने गुण हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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