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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
२१२ होमते हैं क्या यह मूर्तिपूजा नहीं है ? पारसी लोग सूर्यदेव कोभी पूजते हैं तो फिर क्यों कहा जाता है कि पारसी मूर्तिपूजक नहीं हैं। ___०-ठीक पारसी भी मूर्तिपूजक हैं किन्तु सिक्ख और कबीर पंथी आदि तो मूर्ति नहीं मानते हैं । ____ उ०-यह सब कहने मात्र को बाहिरी ढोंग है, जिन लोगों ने अज्ञानता वश यह एक प्रकार का हठ पकड़ लिया है और जानते हुए भी उसे नहीं छोड़ते हैं यह बात दूसरी है, पर मन तो उनका भी मूर्ति की ओर रज्जू अवश्य है, यदि ऐसा न होता तो वे अपने पूज्य पुरुषों को समाधिएँ फिर क्यों बनाते ? और सैकड़ों हजारों कोस दूर से चला कर वे उन समाधियों के दर्शनार्थ एक जगह इकट्ठ क्यों होते तथा उन समाधियों को पूज्य भाव से क्यों देखते एवं पुष्प हार, धूप, दीप नारियल श्रादि से उनकी पूजा क्यों करते ? परन्तु वे ऐसा सब कुछ करते हैं इसलिए सिद्ध होता है कि ये भी मूर्ति पूजक अवश्य हैं।
प्रबो०-माना, ये भी मूर्तिपूजक हैं किन्तु तारण पंथी. लौकाऽनुयायी, स्थानकवासी और तेरहपंथी लोग तो मूर्ति को नहीं मानते हैं। ___उ०-- तारणपंथी लोग भले ही मूर्ति को नहीं माने पर वे लोग भी शास्त्रजी को तो एक उच्चासन पर स्थापित कर अच्छे सुन्दर वस्न आदि से उनको सजावट करते हैं, पुष्प अक्षत आदि से तथा स्वर्ण, चांदी के बने कृत्रिम पुष्पों से सोत्साह शास्त्रजो को पूजते हैं और इस प्रकार से पूजा करने में वे तीर्थङ्करों की भक्ति कर अपना प्रात्म-कल्याण समझते हैं क्या यह मूर्ति पूजा नहीं है ?। दूसरा लौकामत के लिए तो अब यह सवाल ही
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