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________________ २.११ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर है भावना आत्म-कल्याण साधन की रहती यह ऐसा क्यों है ? क्या इन सब विधानों से यह सिद्ध नहीं होता कि मुसलमान लोग मूर्तिपूजक हैं। क्या यह प्रकार मूर्तिपूजा का नहीं है ? यदि है तो आपका कथन नितान्त अनर्गल है । प्र० - खैर ! आपके कथनानुसार माना कि मुसलमान तो मूर्तिपूजक हैं परन्तु क्रिश्चियन (अंगरेज) लोग तो मूर्तिपूजक नहीं हैं, इसका क्या उत्तर है ? उ०- - इसका उन्हार यह है कि क्रिश्चियनों में रोमन कैथोलिक लोग तो प्रत्यक्ष में ही मूर्तिपूजा करते हैं अतः उनके लिए कुछ कहना व्यर्थ है । परन्तु प्रोटेस्टेण्ट पार्टी वाले भी केवल मुँह से कहते हैं कि हम मूर्तिपूजा नहीं मानते हैं किन्तु वे भी अपने गिरजाघरों में महात्मा ईसामसीह की शूली सर लटकती हुई मूर्ति रखते हैं, उसे देख उनका दिल रोमाञ्चित हो जाता है पुष्प धूपादि से उसकी पूजा करते हैं। सिर पर से टोप नीचे उतार कर घुटने टेक वे उस मूर्त्ति को नमस्कार करते हैं क्या यह मूर्तिपूजा नहीं है ? हमारी समझ में तो यही मूर्तिपूजा का विधान है । प्र० -- माना कि अंगरेज भी मूर्तिपूजा मानते हैं परन्तु पारसी लोग तो मूर्ति का नाम ही नहीं लेते कहिये यहाँ क्या नवाब है ? उ०. -भाई खूब कहा, पारसी लोग मूर्ति का नाम भी नहीं लेते ? हम तो जानते हैं कि पक्के मूर्तिपूजक तो पारसी ही हैं | देखिये उनका इष्टदेव अग्नि है और वे अग्निदेव की पूजा करते हैं, अग्नि के सामने बाजा बजाते हैं, पुष्प घृत आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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