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________________ मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर २१० मुहम्मद के शिष्य समुदाय में सबसे पहिले हमारे लौकाशाह ने और बाद में गुरु नानकशाह, कबीर, और रामचरण आदि व्यक्तियों ने उस अनार्य संस्कृति का अन्धाऽनुकरण किया, जो अद्याऽवधि भी जारी है पर यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि जितने मूर्ति विरोधी आज तक हुए हैं और अपना अलग मत चलाया है, वे सबके सब मूर्तिपूजा से किसी हालत में बच नहीं सके हैं । चाहे वे इस प्रक्रिया को किसी अन्य रूप में माने पर इस (मूर्तिपूजा) को मानते जरूर हैं । यही क्यों किन्तु वे मूर्तियों की पुष्पादि से भी पूजा करते हैं। प्र०-बताइये ? कि मुसलमान लोग कैसे मूर्ति पूजक हैं ? उ०-मुसलमान लोग मूर्तिपूजक हैं इसको कौन इन्कार करता है ? मुसलमान लोग मूर्तिपूजक नहीं हैं तो फिर वे हजारों रुपये खर्च कर, अनेक कष्ट उठाकर, मक्का मदीना की यात्रार्थ क्यों जाते हैं ? तथा वहाँ जो काबा नाम के मंदिर में काला पत्थर रक्खा हुश्रा है उसकी सात बार प्रदक्षिणा करके अपने कृत पापों को नष्ट करने की भावना से उसका सात वार चुम्बन क्यों करते हैं ? एवं वहाँ जो झमझम नाम का खारा पानी का कुआँ है; उसके जल का चरणामृत क्यों लेते हैं ? उन्हें फूल फल क्यों चढ़ाते है ? और मणों (बन्द) लोबान धूप क्यों खेवते हैं ? यह सब क्यों किया नाता है ? वे ताबूत ताजिया आदि फिर किस लिए बनाते हैं । मसजिदों में पीरों की स्थापना किस कारण होती है ? अजमेर को ख्वाजापीर की दरगाह को यात्रार्थ सैकड़ों कोस दूर २ से असंख्य मुसलमान आते हैं यह क्या जानकर आते हैं ? इन सब उपर्युक्त कृत्यों के संपादन करने में मुसलमानों की आन्तरिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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