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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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पूजा । पर कार्य की सिद्धि के लिए कारण की पूजा सब संसार करता है।
प्र०-आप संसार भर को मूर्ति पूजक बतलाते हो किन्तु संसार में मत्ति नहीं मानने वालों की संख्या करोड़ों की है, कहिये यह कब से और क्यों ? ___उ०-इतिहास के प्रखर विद्वानों ने अपक्षपात भाव से शोध और खोज कर यह निष्कर्ष निकाला है कि "संसार भर में मूर्ति पूजा का प्रचुरता से प्रचार था और सब लोग अपने अपने माने हुए देवों की मूर्तियों द्वारा ख व शास्त्र कथित विधानों से पूजा कर आत्म-कल्याण करते थे परन्तु काल की कुटिल गति से विक्रम की सातवीं शताब्दी से अरबिस्तान में एक मुहम्मद साहिब नाम की व्यक्ति हुई जिन्होंने उस समय अरबिस्तान में मूर्तियों की ओट से होने वाले स्वार्थान्ध अत्या-- चारों को रोकने का बीड़ा उठाया पर उनको यह बात समझ में नहीं आई कि शरीर पर पैदा हुए क्षत को मिटाने के लिए उसी का उपचार करना चाहिये या समचे शरीर को ही इस संसार से मिटा देना चाहिए अतः उन्होंने उस बिगड़ी दशा का वास्तविक सुधार न कर मूर्तिपूजा का ही विरोध कर अपना "मुस्लिम मजहब" नामक नया पन्थ निकाला, जिसे आज १३५८ वर्ष हुए हैं। उनका यह कार्य पूर्वोक्त उदाहरणाऽनुसार ऐसा ही घटित हुआ कि जिस मनुष्य के सिर पर बाल बढ़ गए हों और वह उस झंझट को मिटाने के लिए नाई के पास जाय, तब नाई उन बालों को न काट बाल पैदा करने वाले सिर को ही काट डाले कि न रहे बांस न बजे बांसुरी,, किन्तु मुहम्मद साहिब ने
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