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________________ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर २०४ उ०-संयम रूपी हैं या अरूपी ? प्र०-संयम रूपी नहीं किन्तु अरूपी हैं । उ०-तो अरूपी संयम को आप कैसे देख सकते हो ? । प्र०-अरूपी संयम को हम देख तो नहीं सकते हैं, पर तीर्थङ्करों के वचनों से जानते हैं। उ-तीर्थङ्करों ने तो स्वलिङ्गी, अन्यलिङ्गो और गृहलिङ्गी तीनों को सिद्ध होना बतलाया है (देखो भगवती सूत्र) क्या आप इन तीनों को नमस्कार करते हैं ? प्र०-नहीं हमको मालूम पड़े कि इनमें संयम हैं उन्हीं को हम नमस्कार करते हैं। उ०-आपको कितना ज्ञान है ? जो आपको अंतःस्थ अरूपी संयम का पता पड़ जाय, भला, बताइये तो सहीकि आपके गुरु भव्य हैं या अभव्य ? ___प्र०--यह तो ज्ञानी ही जान सकते हैं, पर रजोहरण मुंह'पत्ती आदि साधुत्व के चिन्ह होने से हम परम्पराऽऽगत व्यवहार से जान लेते हैं कि यह साधु है। ___उ०--तबतो आपके वन्दन पूजन के कारण गुरुजी के रजो हरण और मुंहबत्ती आदि वाह्यचिन्ह हुए जो कि जड़ हैं फिर आप यह क्यों कहते हैं कि "हम जड़ आकृति ( मूर्ति) को नहीं मानते हैं। आप स्वयं यह सोचिये कि आपके गुरुजी का शरीर और रजोहरण आदि एक आकृति रूप है या नहीं ! तथा ये जड़ हैं या चेतन । यदि ये, आकृति जड़ रूप हैं तो इन जड़ ‘पदार्थों में ज्ञानादि अरूपी गुणों की कल्पना करना और उनकी चन्दन पूजन करना क्या जड़ पदार्थ की सेवा नहीं है ? यदि है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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