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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर अवलंबन करते हैं जिससे कि आप हमें मूर्ति-पूजक करार देते हो।
उ०-आप अपने गुरुजी को नमस्कार करते हो ? ।
प्र०-जी हाँ ! पर इससे क्या हुआ, हमारे गुरुजी में तो ज्ञानादि गुण हैं। ___ उ०-आप गुणों को नमस्कार करते हैं या शरीर को ? यदि गुणों को नमस्कार करते हो तो ज्ञानादि गुण तो अरूपी हैं जो कि आपके दृष्टिगोचर नहीं होते। और आत्मा में अनन्त ज्ञान दर्शनादि गुणों का खयाल करके दृश्य शरीर को नमस्कार करते हो तो यह प्राणी मात्र अर्थात् क्या एकेंद्रिय,क्यापञ्चेद्रिय, क्या भव्य, क्या अभव्य, सब जीवों में विद्यमान है अतः प्राणी मात्र को नमस्कार करना चाहिए । यदि केवल शरीर ही को बंदना करते हो तो शरीर तो जड़ और हाड मांस का पुतला है और यह भी मनुष्य मात्र के होता है अतः कमसे कम सब प्राणियों को नहीं तो मनुष्य मात्र को तो नमस्कार करना ही चाहिये ।
प्र०-हमारे गुरुजी का शरीर, जड़ है तो क्या हुआ, पर हमारे लिए तो वे पूज्य हैं । हम उनके अन्दर गुणों की भावना करके ही वन्दन पूजन करते हैं। आपको इसमें क्या आपत्ति है ? ___उ०-हमको इसमें कोई आपत्ति नहीं, परन्तु यदि आप इसी प्रकार मूर्ति में भी गुणों की कल्पना करके मूर्ति द्वारा तीर्थकरों का वन्दन जन करो तो, आपको क्या आपत्ति है ।
प्र०-हमारे गुरुजी तो रजोहरण, मुंहपत्ती, आदि रखते और संयम पालते हैं । मर्ति क्या रखती और कौनसा संयम पालती है जो उसे हम वन्दन पूजन करें ? ।
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