SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय शिल्प कला श्रीमान् रा० ब० पं० गौरीशंकरजी श्रोमा ने भारतीय शिल्पकाल और विशेष में आबू के जैनमन्दिर के बारे में अपने उद्गारों को किस प्रकार प्रकाशित किये हैं सो नीचे पढ़िए "जब से राजपूताने पर मुसलमानों के हमले होने लगे तभी से वे समय समय पर धर्म-द्वेष के कारण यहाँ के सुन्दर मन्दिरों आदि को नष्ट करते रहे इसलिये १२०० वर्ष से अधिक पूर्व के शिल्प के उत्तम नमूने यहाँ बिरले ही रह गये हैं, तिस पर भी इस देश में कई भव्य प्रासाद आदि अब तक ऐसे विद्यमान हैं, जिनकी बनावट और सुन्दरता देखने से पाया जाता है कि प्राचीन काल में यहाँ भी भारत के अन्यान्य प्रदेशों के समान तत्क्षणकला बहुत उन्नत दशा में थी । महमूद गजनवी जैसा कट्टर विधर्मी मथुरा के मन्दिरों की प्रशंसा किये बिना न रह सका । उसने अपने ग़जनी के हाकिम को लिखा कि, "यहाँ ( मथुरा में ) असंख्य मन्दिरों के अतिरिक्त १००० प्रासाद मुसलमानों के ईमान के सदृश दृढ़ हैं । उनमें से कई तो संगमरमर के बने हुए हैं, जिनके बनाने में करोड़ों दीनार खर्च हुए होंगे । ऐसी इमारत -यदि २०० वर्ष लगे तो भी नहीं बन सकतीं ।" बाड़ोली ( मेवाड़ में) के प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर की तक्षण कला की प्रशंसा करते हुए कर्नल टॉड ने लिखा है कि "उसकी विचित्र और भव्य बनावट का यथावत् वर्णन करना लेखनी की शक्ति के बाहर है यहाँ मानो हुनर का खजाना खाली कर दिया गया है । उसके स्तम्भ, छतें और शिखर का एक एक पत्थर छोटे से मंदिर का दृश्य बतलाता है । प्रत्येक स्तम्भ पर खुदाई का काम इतना सुन्दर और बारीकी के साथ किया गया है कि उसका वर्णन नहीं I १९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy