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________________ प्रकरण पांचा १९० सं० १२ व ४ एतस्य पूर्वायां कोट्टियातो गणतो बम्ल दासियातो कुल तो उचेन-"इत्यादि। संवत् १२ चौथा मास ग्यारहवें दिन कोटिगण ब्रह्मदासी याकुल और उच्च नागौरी शाखा के आर्य कुलकी शिष्या इत्यादि । सजा का प्राय है, क्या कह० अर्थ मुसलमानों के राजत्व काल में कई अज्ञ लोगों ने मूर्तिपूजा के विषय में यद्व-तद्व बोलकर जीवत रह सके। यदि वही मौर्यराजकाल का समय होता तो मूर्ति के विषय में थोड़ा भी अपशब्द बोलने वाले बड़ा भारी सजा का पात्र हो जाता। देखिये महामन्त्री चाणक्य का अर्थशास्त्र जो सर्वमान्य है, क्या कहता है। श्राक्रोशादेव चैत्यानां उत्तम दंड महर्ति-कौ० अर्थ ३-१८। भावार्थ-देवता और धर्म मन्दिरों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था उनके प्रति किसी प्रकार का कुवाक्य बोलने पर कड़ा दंड मिलता था। “मौर्यसाम्राज्य का इतिहास" बुद्धिमान विचार कर सकते हैं कि सम्राट चन्द्रगुप्त का समय वि० सं० पूर्व चौथी शताब्दी का है । मौर्य चन्द्रगुप्त कट्टर जैन था और मन्दिरों के प्रति उनकी अटूट भक्ति थी । अस्सी करोड सोनइयें उनके मंदिरों के निमित व्यय किये थे। उनके राजस्व समय में कोई व्यक्ति देवमन्दिरों की अाशातना तो क्या पर कटु शब्द बोलने वाला भी दंड का पात्र समझा जाता था । मूर्तिपूजा के अस्तित्व में इससे बढ़कर क्या प्रमाण हो सकता है ? xx Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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