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मथुरा का शिलालेख के अंक में पुरातत्त्वविद् और भारतीय प्रखर विद्वान डॉ० रा० बेनरजी ने मुद्रित करवाये थे उसके कतिपय लेख यहाँ उद्धत किये जाते हैं। ___ "सिद्ध सं०६ हे० ३ दिन १० ग्रहमित्रस्य धितु शीवशिरिस्य वधु एकडलस्य कोट्टियातो गणतो, आर्यतरिकस्य कुटुविनिये, ठानियातो कुलतो वैरातो शाखातो निवर्तना गहपलाये दिति" ____ भावार्थ सिद्धं [ सिद्ध को नमस्कार ] सं० ९ वा वर्ष हेमन्त का तृतीय मास के १० वें दिन कोट्टीयगण स्थानीयकुल
और वनशाखा के आर्य तरिक की आज्ञा से एक डल की स्त्री शिवश्री की पुत्रवधु प्रहभित्रा का पुत्र गयला को बनाई यह मूर्ति हुई ।
ऊपर के शिलालेख वाली मूर्ति मथुरा से मिली और लखनऊ के म्यूजियम में सुरक्षित है । मूर्ति खड़ी ध्यान में है पर मस्तक खण्डित हैं मूर्ति के दक्षिण को ओर पुरुषाकृति के दो पुरुष हाथ जोड़ कर खड़े हैं, बायीं ओर एक स्त्री हाथ जोड़कर खड़ी है मूर्ति पर का लेख अपभ्रंश संस्कृत भाषा का एवं उस समय कुशान लिपि में खुदा हुआ है।
इस भाँति कुशान सं० १० के समय को जैनमूर्ति रोहीलखंड के रामनगर के खुदाई के काम करते समय मिली है जिसके विषय में डॉ० फूरर ने अपने लेख में उस मूर्ति को महत्व का स्थान दिया है।
इसके अलावा एक मूर्ति पर निम्नांकित शिलालेख है।
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