SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२ ) आपका परम पवित्र जीवन अनुकरणीय एवं आदरणीय है उस सब को इस संक्षिप्त परिचयमें हम बतला नहीं सकते हैं अतः समय मिलने पर फिर कभी विस्तृत रूप से लिख कर पाठकों की सेवा में रखेंगे। यहां पर अभी तो मात्र इतना हो कह देना समचित समझते हैं कि आप श्री ने मारवाड़ की वीर भूमि पर अवतार लेकर जननीजन्म भूमि की सेवा करने में अथाह परिश्रम किया है । कितनेक लोग आपद् समय में यह कह उठते हैं कि हम अकेले क्या करें ? पर हमारे मरुधर केशरी मुनि श्री अकेले होते हुए भी अनेकानेक विपक्षियों के बीच में रह कर निडरता पूर्वक क्या-क्या काम किया और कर रहे हैं उनको सुनते ही मनुव्य चकित हो जाते हैं। यह तो आप जानते ही हैं कि जैन मुनियों को पैदल भ्रमण करना और क्रिया कल्पादि से यों ही बहुत कम समय मिलता है। किन्तु उस अवशिष्ट ( बंचित) समय में भी छोटे बड़े १७१ अन्थों का संपादन करना या कई तो हाथों से लिखना, प्रूफ संशोधन करना, आये हुए प्रश्नों का उत्तर लिखना, काम पड़ने पर शास्त्रार्थ के लिए तैयार रहना, प्रायः हमेशां व्या. ख्यान देना,इसके अलावा कई बोर्डिगें, पाठशालाएं, कन्याशालाएँ, लाइब्रोरिएँ, सेवा मण्डलों आदि सँस्थाएँ स्थापित करवाना, जहाँ धर्म की शिथिलता देखो वहां उत्सव महोत्सव करवा के धर्म की जागृति करना, कई मन्दिरों की आशातना मिटा के पुनः प्रतिष्ठा करवाना, इतना ही नहीं पर समय-समय तीर्थों को यात्रा और अन्य भव्यों के यात्रार्थ संघ निकलवाना आदि आदि अनेक समाज और धर्म कार्य आपश्री ने बड़ी योग्यता और उत्साह पूर्वक किये और करवाये हैं फिरभी आरके सहायक कौन ? | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy