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________________ १७७ स्थानकवासियों में मूर्तिपूजा समाजी भाइयों से पूछते हैं कि ऐसा करने में क्या आपके ये मनोभाव नहीं रहते कि सारी जनता हमारे महर्षि के फोटो को देखे, और उनके प्रति श्रद्धा का भाव रख उनके मन्तव्यों को माने ? यदि हाँ, तब तो यह मूर्तिपूजा का ही एक प्रकार है ! और नहीं तो ऐसा करना केवल श्रम मात्र है। यदि स्वामीजी के फोटो की सवारी में तुम्हारा भाव पूज्यता का है तब तो हम तुम से क्या विशेष करते हैं। हम भी विश्वोपकारी परमेश्वर की मूर्ति बना उसकी तरफ अपनी श्रद्धा प्रकट कर सारे संसार को उसके गुण गाने का इशारा करते हैं। तब ऐसा करने में तुम्हारी गुरुपूजा पूजा नहीं और केवल हमारी ईश्वर की मूर्तिपूजा ही मूर्ति पूजा है इस प्रकार यह मिथ्या हठ क्यों ? तुम्हारे पूज्य पुरुष विशेष केवल हम तुम जैसे साधारण मनुष्य ही हैं उनसे प्राथना करने से कोई काम नहीं निकलने का; अतः उनके चित्र के आगे तुम्हारी प्रार्थना न करना भी उचित हो है । तब हमारे ईश्वर सवज्ञ परमेश्वर उनकी पूजा, उनसे प्रार्थना में हमारी चित्तवृत्ति निर्मल और आत्मा का विकास होता है अतएव प्रभुपूजा करना मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। इस विषय में श्रीमान् पं० दरबारीलालजी ने क्या हो खूब लिखा है जो नीचे दिया जाता है:___एक आर्यसमाजी कदाचित् महात्मा राम और कृष्ण की मूर्तियों का अपमान देख ले परंतु स्वामी दयानन्द के चित्र के अपमान से उसका हृदय भर जाता है । यह बात दूसरी है कि शास्त्रार्थ में अपनी पक्ष सिद्धि के लिए आवश्यक होने पर कोई आर्यसमाजी विद्वान् , स्वामी दयानंद सरस्वती के चित्र पर जूता (१२)-३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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