SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण पांचवाँ १७२ कत्तों को मनुष्याकार में प्रस्तुत करना बहुत अधार्मिक कृत्य समझते थे। उनका भी वह विचार आखिर सूर्यदेव की पूजा में परिणत हुआ। और पूजा को खुले दिल से योग्य मानने लगे। जब यहूदियों का इतिहास एक तरफ तो शुद्ध एकेश्वरवाद से जो कि भयंकर राज्य कानूनों से परिपुष्ट है, और दूसरी तरफ पूजा भक्ति के लिए स्पष्ट ( रूप से तैयार ) दिखाई देता है, और हाथ से स्पर्श हो ऐसी चीज के लिए आश्चर्यकारक अत्यन्त बलवती इच्छा, इन दोनों के आपसी झगड़ों की सिर्फ नोंध है । ___जिसको किसी ने उत्पन्न नहीं किया है तथा जो अदृश्य है ऐसा परमेश्वर अपनी तरफ बहुत कम को आकर्षित कर सकता है । कोई तत्त्वज्ञ पुरुष भले ही ऐसे उत्तम विचार की तारीफ करे परन्तु साधारण जन समूह तो ऐसे शब्द जो कि “ उनके मन में मूर्ति का कुछ भी प्रादुर्भाव नहीं कर सकते" उन से घृणा कर दूर भगेंगे। क्रिश्चियानीटी ने जो अपनी ( सैद्धान्तिक ) विजय शीघ्र ही करली इस में उसे जो सिद्धान्त सहायक हुए थे वे (वापिस ) विगड़ने लगे और एक नवोन मर्ति पूजा जन्मो । क्रिश्चियिन मूल साधुओं ने घर देवताओं की जगहें संभाल ली । सेन्ट ज्योज ने मंगल का स्थान लिया । सेन्ट ऐल्मो, कैस्टर और पोल कस के बदले मछुओं को दिलासा देने वाले के पद पर कायम हुए। कुमारिका माता और सिसीलिया गौरी तथा सरस्वती के स्थान पर मानी गई। सुधारकों ने ऊपर कही हुई अनेक बातों पर कई दफा जोर दार आक्रमण किया है। पर परिणाम सिर्फ स्वल्प विजय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy