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व्यवहार और व्यापार की कुशलता हासिल करली और जैसे व्यापार में दक्ष थे वैसे ही वीर एवं साहसी भी थे। किशोरावस्था के बाद जब आपने युवावस्था में पदार्पण किया तो चारों ओर से आपकी शादी के लिए शुभ समाचार आने लगे, पर आपके पिताश्री ने अन्तिम निर्णय सलावास के श्रीमान् भानुमलजी बागरेचा की सुयोग्य कन्या राजकुंवर के साथ किया
और तदनुरूप वि० सं० १९५४ मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी के दिन बड़े ही धूम धाम से हमारे चरित्र नायक कुंवर गयवरचन्द का विवाह श्रीमती राजकुवर के साथ हो गया।
मेहताजी के हमारे चरित्र नायक के अतिरिक्त और भी पाँच पुत्र के तथा एक पुत्री थी, परन्तु इन सब में सब से बड़े आप ही थे। अतः मेहताजी आपके लिये पहिले से ही अनेक आशाओं के पुल मन ही मन बांध रहे थे, परन्तु प्रकृति को कुछ और ही मन्जूर था। हमारे चरित्र नायक के धार्मिक संस्कार प्रारम्भ से ही इतने उज्वल थे कि आपने बचपन ही में सामायिक, प्रतिक्रमण और कई एक ढाले तथा अनेक थोकड़े कण्ठस्थ कर लिए थे। - आपकी शादी को पूरे चार वर्ष भी नहीं बीते थे कि दैववश
आपका मन संसार से विरक्त होगया तथा आप दीक्षा लेने पर उतारू होगए, परन्तु आप के सम्बन्धी भला ऐसा करने में कब अनुमति देने वाले थे अतः “श्रेयांसि बहुविघ्नानि" के अनुसार दोक्षा लेना और सम्बन्धियों द्वारा उसकी आज्ञा न मिलना, . गणेशमलजी, हस्तीमलजी, बस्तीमलजी, मिश्रीमलजी, गज. गाजजी और जतनबाई।
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