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________________ प्रकरण पांचों १५८ हालत में यदि स्याद्वाद निधान अभयकुमार ने आर्द्रककुमार के लिए मूर्ति भेजी हो तो यह सर्वाश में सत्य है। __२-अमेरिका में भी खोद काम करते समय ताम्रमय सिद्ध चक्र का गट्टा मिला है, वह भी उतना ही प्राचीन बताया जाता है जितनी कि प्राष्ट्रिया वाली प्राप्त मूर्ति प्राचीन हैं। ३-बम्बई समाचार नामक दैनिक अख़बार ता ४ अगस्त १९३४ के अंक में "जैन-चर्चा" शीर्षक स्तम्भ में एक यूरोपयात्रीय विद्वान लेखक ने विस्तृत लेख लिखकर इस बात को प्रबल प्रमाणों द्वारा सिद्ध की है कि अमेरिका और मंगोलिया देशमें एक समय जैनोंकी घनी बस्ती थी। प्रमाण रूप आजभी वहाँ के भूगर्भ से जैन मन्दिर मतियों के खण्डहर प्रचुरता से मिलते हैं । लेखक महोदय ने तो वहाँ की वस्ती के प्रमाण में यहाँ तक कल्पना कर डाली है कि शास्त्रोक्त जैनों का महाविदेह क्षेत्र शायद यही प्रदेश तो न हो। और वहाँ से बहुत लोगों का भारत में आने का भी अनुमान किया है। कुछ भी हो पर इतना तो निःशङ्क माना जा सकता है कि जैनों में मूर्ति का मानना बहुत प्राचीन समय से प्रचलित तथा जैन मूर्ति- जा का प्रचार विश्वव्यापी था। ४-श्याम में एक पहाड़ी पर प्राचीन जिनालय अब भी विद्यमान है। कई एक लोगों की यह धारणा है कि मूर्ति का विरोध केवल हम ही नहीं पर क्रिश्चियन और मुसलमान भी करते हैं। उनकी इस भ्रान्त भावना के परिष्कार के लिए हमारा इतना ही कहना है कि क्रिश्चियन और मुसलमान किस प्रकार मर्ति का विरोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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