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राजाओं के दुर्गों में जैनमन्दिर सदा सर्वदा के लिए संसार में स्थायी बनाया था। यद्यपि बहुत से किलों के मन्दिर अनार्य यवनों ने अपनी सत्ता में नष्ट भ्रष्ट कर दिए फिर भी अनेक ऐसे २ मन्दिर उत्तंग पहाड़ों पर, अगम्य किलों पर और निर्जन वनों में शेष रह गये जो आज के इस गये गुजरे जमाने में भी भारतीय जैनों की प्राचीन विभूति की स्मृति दिला रहे हैं। उदाहरणार्थ अवशिष्ट मन्दिरों का कुछ परिचय नीचे दिया जाता है।
१-चित्रकोट (चित्तौड़) के किले में जैनमन्दिर तथा जैनों का कीर्ति स्तम्भ, जैनों के उज्ज्वलभूत का परिचय दे रहे हैं।
२-कुम्भलगढ़ के दुर्ग में आज भी कई जैनमन्दिर मौजूद हैं।
३-मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के भग्न किल्ले में सांप्रत समय में भी दुमजिला मन्दिर शेष है।।
४-जैसलमेर के दुर्ग में देवभवन के सदृश आठ मन्दिर विद्यमान हैं जहाँ कि हजारों भावुक यात्रा करते हैं।।
५-नागपुर ( नागोर) के किले में मन्दिर होने का उल्लेख उपकेशगच्छ चरित्र में मिलता है । पर यवनों ने अपने राजस्व काल में उसे तोड़ फोड़ उस मन्दिर के मसाले से मसजिद बना डाली है।
६-ग्वालियर के किले में पूर्व जमाने में जैन मन्दिर होने का उल्लेख मिलता है।
७-फलोदी के किले में भी जैनमन्दिर होने का जनप्रवाद है।
८-दौलताबाद के दुर्ग में बहुत से जैनमन्दिर होने का उल्लेख शत्रु जय के पंद्रहवां उद्धरक समरसिंह के चरित्र में मिलता है और आज भी वहाँ से बहुत सी जैनमूर्तिएँ निकल रही हैं।
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