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प्रकरण पांचाँ
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आ रहा है, और यह प्रयास अभी तक निरन्तर चालू है जिससे आशा की जाती है कि अचिर भविष्य में हो संसार के इतिहास के साथ जैन साहित्य समाज और धर्म का इतिहास भी अधिकांश में परिम्फुट होगा। क्योंकि इस प्रभावशाली और महत्त्व के कार्य से जो कुछ स्तूप, मूर्तिएँ शिलालेखादि प्राप्त होते हैं उन्हें भारतीयता के पक्षपात से रहित योगेपियन विद्वान् अपने अपने ग्रंथों में सचित्र छाप निष्पक्षतया अपना निर्भीक अभिप्रायदेते हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तविक सत्य क्या है ? हमें पूर्ण विश्वास है कि पुरात्वज्ञों के प्रयत्न द्वारा यह खुदाई की प्रथा यों की यों कुछ काल तक जारी रहो तो सारी दुनियां में यह बात स्वयं जाहिर हो जायगी कि जैन धर्म की मूर्तिपूजा संसार में सब से प्राचीन है, और फिर हमारे उन मूर्तिपूजक भाइयों को जो रातदिन हमें इसके लिये कोसा करते हैं, प्रत्युत्तर देने का स्थान तक नहीं मिलेगा।
क्योंकि हमारे कई एक भाई केवल पक्षपात के विमोह में फंस, बिल्कुल बेभान हो मूत्ति के बारे में यद्वा-तद्वा वचन बोल छठते हैं, पर इस प्रकार जब वे अपने प्राप्त पूर्व इतिहास की ओर नजर डाल देखेंगे तो उनकी अज्ञता का पड़दा स्वयमेव दूर हो जायगा, और लाचार हो यह कहना पड़ेगा कि हमारे पूर्वजों ने जैनमूर्तियों का निर्माण करवा कर न केवल हम पर ही किंतु बड़े बड़े राजा महाराजों पर भा जैन धर्म का कैसा जबर्दस्त प्रभाव डाला था । तथा उसका कारण उन राजामहाराजाओं ने अपने विशाल दुर्गों, गढों और किलों तक में कैसे २ आलीशान एवं ऊँचे शिखरोंवाले मन्दिर बनवाकर किस तरह जैन धर्म को
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