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________________ डॉ. हर्मन जोकोबी श्रीजीवाभिगमसूत्र आदि अनेक आगमों में मूर्तिपूजा विषयक पाठ बताये । डॉक्टर साहब को बड़ा ही आश्चर्य हुआ तथा सत्य हृदय से मत्तिपूजा को सहर्ष स्वीकार किया और अजमेर में आपने जो कुछ कहा था, उससे गलतफहमी न फैले इस ख्याल से आपने सत्य जाहिर किया। आपके दिये हुए व्याख्यान में ही आपने यह कहा कि: "He pointed out to me the passage in the Angas, which refer to the worship of the idols of Tirthankaras and assisted mein many more ways." : ता० ४-३-१४ के जैन साहित्य सम्मेलन सभा में दिया हुआ 'व्याख्यान के शब्द' जैन साहित्य सम्मेलन मुद्रित ई० स० १९१६ पृष्ट ३७। इससे यह स्पष्टतया जाहिर हो जाता है कि डॉक्टर साहब का. श्राखरी मंतव्य जैन आगमों में मूर्तिपूजा के विधान का ही है। (२९) शोधखोज के अजोड अभ्यासक प्रकांड विद्वान् सद्गत श्रीयुत राखलदास वन्द्योपाध्याय अपनी दीर्घ विचारणा के अंत में जिनप्रतिमा ही नहीं पर पूजन विधि के लिये ही अकाट्य दलीलें रज्जू करते हैं.... आज से२२०० या २५०० वर्ष पहले जैनो क्या पूजते थे ? किस तरह पूजते थे? इसका पता लगाना ही चाहिये । ई० सं० पूर्व २००-३०० वर्षों पहिले उत्तर भारत के जैन मूर्ति पूजा करते थे । प्रमाण रूप में मौजूदा समय में भी मथुरा कौशाम्बी श्रादि प्राचीन नगरों में से मूर्तिऐं मिलती हैं। .. उपरोक्त इन पुरातत्त्वज्ञों के शोध-खोज से प्राप्त साधनों से जैन समाज का लुस प्राय इतिहास आज बहुत कुछ प्रकाश में Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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