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प्रकरण पाचवाँ
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यह उनके निखालस और पक्षपात रहित हृदय की बात है। उन्होंने यह तो कहा ही नहीं कि जैनागमों में मूर्तिपूजा है ही नहीं। आपने ने अपने कृत अभ्यास से यह कहा कि मुझे मेरे अभ्यास में ऐसा पाठ देखने में नहीं आया।
इतने पर तो हमारे भाई फूले न समाये और डॉक्टर महोदय के वचनों को किसी अतिशय ज्ञानी के वचन की तरह मान नाद फूंकने लगे कि डॉ० जेकोबोने जैनागमों के गूढ अभ्यास से यह निश्चय किया है कि जैनागमों में मूर्तिपूजा का विधान है ही नहीं । पर उन्हें यह पता नहीं था कि पाश्चात्य विद्वान् मुकाबले उनके इतने हठधर्मी नहीं हैं, बल्कि सत्य के उपासक ही हैं। .. ... उपरोक्त घटना घटी उस वख्त शास्त्र विशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्म सूरीश्वरजी महाराज जोधपुर में थे, और आपके ही प्रयत्न से जैन साहित्य सम्मेलन की एक विराट् आयोजना हो रही थी डॉक्टर महोदय को भी सम्मेलन में आने का था । श्राप जोधपुर पधारे और श्राचार्य महाराज से भेट कर अपनी कई शंकाओं के साथ साथ ज्ञातव्य प्रश्न भी किये । सूरीश्वरजी ने डॉक्टर साहब की अनेक शंकाओं का निराकरण अच्छी योग्यता से करके उनको सत्य. मार्ग बताया आपके हृदय में जैनधर्म सम्बन्धी आदर्श स्थान हो गया।
आपने सूरिजी की मुक्तकंठ से भूरि-भूरि प्रशंसा की। मूर्तिपूजा का प्रश्न भी अनेक प्रश्नों में से एक था। ऊपर की बात भीडॉक्टर महोदय ने सूरिजी के आगे कही । फिर क्या था आचार्य महाराज अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों से डॉक्टर साहब के मन को शंकाओं को मिटाकर जैनागमों में श्रीभगवतीसूत्र श्रीज्ञातासूत्र, श्रीउपासकदशांगसूत्र श्रीप्रश्न व्याकरण, श्रीउववाईसूत्र श्रीराजप्रसेणीसूत्र
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