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प्रकरण पांचवाँ
१३६ __(8) भगवान महावीर दीक्षा लेकर सातवें वर्ष में भ्रमण करते हुए जब आबू के निकट मुण्डस्थल नामक नगर में पधारे
और उसी स्थान पर आपके दर्शनार्थ राजा नंदिवर्धन श्राए तो उन राजा ने इस दर्शन लाभ की चिर स्मृति के लिए वहीं पर एक सुन्दर मन्दिर बनवा दिया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री केशीश्रमणा चार्य ने कराई थी, उसके खण्डहर आज भी वहाँ दृष्टिगोचर होते हैं, जिसका पता तत्रस्थ शिलालेख से मिलता है, वह शिलालेख विद्वद्वर्य मुनि श्री जयंतिविजय जी महाराज ने अपनी खोज द्वारा प्राप्त किया है जो पुरातत्त्व पर अच्छा प्रकाश डालता है ! यह शिलालेख जैनपत्र ता० १५.३-३१ में मुद्रित भी हो
चुका है।
मधमानंदसूरीश्वरजी में हुई थी, ऐसा उमटा भगवान बार
(१०) कच्छ भद्रेश्वर नगर में एक प्राचीन मन्दिर अब भी वर्तमान है जो भगवान महावीर के निर्वाण के बाद केवल २५ वर्षों में बना हुआ है । उस मन्दिर की प्रतिष्ठा भगवान सौधर्म स्वामी के कर कमलों से हुई थी, ऐसा उल्लेख मिलता है। श्री विजयानंदसूरीश्वरजी ने अपने 'अज्ञान तिमिर भास्कर' नामक ग्रंथ में इस मन्दिर के शिलालेख की नकल स्पष्ट और विस्तार से लिखी है। . (११) उपकेशपुर (ओसियों) और कोरण्टा के महावीर मन्दिर की प्रतिष्टा वीरात् ७० वर्ष में प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरी के कर कमलों से हुई थी। ये दोनों मन्दिर आज भी भक्त भव्यों का कल्याण करने में खड़े हैं, इस विषय में प्राचार्य श्रीकक सूरीश्वरजी महाराज फरमाते हैं कि
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