________________
बड़ली का शिलालेख
"उपकेशे च कोरंटे तुल्यं श्रीवीरबिम्बयोः । प्रतिष्ठा निर्मिता शक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥" तथा इन दोनों की प्रतिष्ठा के समय के बारे में लिखा है कि :“सप्तत्या वत्सराणां चरमजितेमुक्तास् वर्षे । पंचम्यां शुक्लपक्षे सुरगुरुदिवसे ब्रह्मण सन्मुहूर्ते ॥ रत्नाचार्यैः सकलगुणयुतैः सर्वसंघाऽनुज्ञातैः । श्रीमद्वरस्य बिम्भवशतमथने निर्मितेयं प्रतिष्ठा ॥"
१३७
"उपकेशगच्छ चरित्र वि० सं० १३७१ का लिखा " यही बात आचार्य विजयानन्दसूरि अपनी जैनधर्म विषयक प्रश्नोत्तर नामक पुस्तक में लिखते हैं कि
-
-
" एरनपुरा की छावनी से ३ कोस के लगभग यह कोरंटा नाम का नगर आजकल ऊजड़ पड़ा है केवल उस स्थान पर कोरंटा नाम का एक छोटा सा गाँव आबाद है, वहाँ की प्रतिमा भी श्री रत्नप्रभसूरिजी की प्रतिष्ठा कराई" इन उद्धरणों से स्पष्ट जाहिर होता है कि पूर्वोक्त दोनों मन्दिर २३९३ वर्ष के प्राचीन हैं ।
4
इतना ही क्यों पर इस कोरण्टा के प्राचीन मन्दिर का एक सबल प्रमाण प्रभाविक चरित्र में भी मिलता है देखों मेरी लिखी "सवाल जाति विषयक शंका समाधान", नामक पुस्तक |
( १२ ) सुघोषापत्र के तंत्री श्रीमान मूलचन्द आशाराम बेटी जैनपत्र वा २६-१-३० के अंक में "भूमि गर्भ में छपायेल अपूर्व शासन समृद्धि" शीर्षक लेखमें लिखते हैं कि:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org