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________________ १३५ विशाज स्तूप . (६) दूसरा उदाहरण महाराजा चेटक का है। जिस समय महाराजा चेटक तथा कोणिक (अजातशत्रु ) के हार हाथी और बलह कुमार के कारण आपस में घोर युद्ध हुआ था और आखिर कोणिक ने विशाला को घेर लिया, उस समय एक नैमित्तिक (शकुनज्ञ ) ने कहा कि जब तक आप इस विशाला नगरी में स्थित तीर्थकर मुनिसुव्रत के स्तूप (चैत्य ) को न गिरादें तब तक आपका विशाला पर अधिकार नहीं हो सकता। राजा कोणिक ने निमित्तिया के कथनाऽनुसार एक पतित साधु द्वारा उस चैत्य को गिरवा दिया और तत्क्षण विशाला को भंग कर अपनी विजय वैजयन्ती फहराई । विशाला नगरी के इस स्तूप का वर्णन हमारे ३२ सूत्रान्तर्गत नन्दीसूत्र नामक ग्रंथ में स्पष्ट रूप से है। पूर्वोक्त दोनों उदाहरण यद्यपि हमारे सर्वमान्य शास्त्रों के हैं तथापि इन उदाहरणों की सत्यता के विषय में मैं इतर लोगों के सन्तोषार्थ यहाँ ऐतिहासिक प्रमाण पेश करता हूँ जिससे इनकी सत्यता पर पूरा प्रकाश पड़ जाय । (७) जिला आकोला (बरार) के पास एक बारसी ताकली नाम का छोटा गाँव है उसमें एक घर की खुदाई का काम करते समय १९ । अखंडित और ७ मम्तकहीन जैन मूर्तिएँ उपलब्ध हुई हैं। उनमें कई एक मूर्तिएं ईस्वी सन् से ६०० या ७०० वर्ष पहिले की पुरातत्त्वज्ञों ने सिद्ध की हैं। ये मूत्तिएँ नागपुर के सेन्ट्रल म्यूजियम में रखी जाने का सरकार ने निश्चय किया है। यह समाचार प्रायः सब सामयिक समाचारपत्रों में प्रकाशित हो चुका है, जैसे--दैनिक अर्जुन ता० १७-५-३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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