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________________ १३१ उदाइ मन्दिर दासी के रूप पर मोहित हो ऐसा षड्यंत्र रचा कि दासी के साथ उस महावीर की मूर्ति को गुप्त रूप से उज्जैन में बुला ली, किन्तु जब यह बात महाराजा उदाई को मालूम हुई तो वे अपना दल बल लेकर उज्जैन पर चढ़ गए । वहाँ चण्डप्रद्योतन के साथ घोर लड़ाई लड़ मर्ति, दासी, और स्वयं उज्जैन नरेश को बाँध अपने साथ लेकर चल पड़े, किन्तु लौटते वक्त मार्ग में वर्षा ऋतु श्राजाने से पानी बरसने लगा इससे अपार जीवोत्पत्ति हुई । उसे देख, उन सब ने जंगल ही में अपना डेरा डाल दिया, और वहीं धर्म कार्यों में अपने दिन बिताने शुरू किये। उन विशाल जन संख्या में राजा उदाई के साथ दश माण्डलिक राजा भी थे, जिन्होंने दशविभागों में अपनो २ छावनिएँ डाली, पर उस समय जंगल में खान पान की सामग्री कहाँ से आती, अतः आस पास के नगरों के व्यापारी लोगों ने वहाँ पर अपनी दुकानें जमा दी जिन से उस जन समुदाय को अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की सुविधा हो गई। वहाँ पर इस प्रकार के विशाल श्रादान प्रदान तथा क्रय विक्रय को देख आसपास के अन्य लोग भी अपना माल बेचने और आवश्यक सामग्री खरीदने को आने लगे जिससे थोड़े ही दिनों में वहाँ एक व्यापार की अच्छी मण्डी चल पड़ी। चतुर्मास समाप्त होने पर राजा उदाई तो अपनी सेना के साथ वहाँ से राजधानी को लौट पड़े किन्तु जो व्यापारी लोग थे वे वहीं अपनी व्यापारिक सुविधा देख कर रह गए और कालान्तर में वे दश छावनियों दशपुर नगर के नाम से श्राबाद होगया ।" 8 यह कथा तो विस्तार से है पर यहाँ प्रसंग मूर्ति का है वास्ते इतना ही लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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