________________
प्रकरण पांचवां
१२० • ऐतिहासिक साधनों में, प्राचीन शिलालेख, प्राचीन सिक्के, प्राचीन मूर्तिएँ, ताम्रपत्र एवं ध्वंसाऽविशिष्ट तथा प्राचीन समय के हस्त लिखित प्रन्थ-मुख्य साधन समझे जाते हैं । अतः इन साधनों पर हो पुरातत्व विशारदों का अधिक से अधिक विश्वास है। ____ विद्वद् समाज और विशेष कर स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे संशोधकों का कहना है कि संसार भर में सब से पहिले मूर्तिपूजा का प्रारम्भ जैनियों से ही हुआ, और अन्य धर्माऽवलंधियों ने मूर्तिपूजा का पाठ जैनियों से ही सीखा। अर्थात् जैनेतर लोगों में मर्ति का पूजना जैनियों का ही मात्र अनुकरण है। यदि यह बात सत्य है तो आज शोध खोजका काम करने से भूगर्भ में से जो ईस्वी सन् के भी ५ हजार वर्ष पहिले की मत्तिएँ उपलब्ध हो रही हैं वे जैनों की हैं या जैनेनरों की। यदि जैनों का अनुकरण करके ही अजैनों ने मूत्तिएँ बनाई हों तो यह निःसन्देह है कि पाँच हजार वर्षों पूर्व भी जैन मूर्तिएँ विद्यमान थीं। नीचे कतिपय उदारहण दिये जाते हैं, देखिये:
(१) गौड़ देश के प्राषाढ नामक श्रावक ने इकोसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ के शासन काल में आत्मकल्याणार्थ तीन प्रति. माएं बनवा कर उनकी प्रतिष्ठा कराई थी; उनमें से एक चारूप नगर में, दूसरी श्रीपत्तन में और तीसरी स्थंभन नगर में स्थापित की गई। काल क्रम से चारूप और श्रीपत्तन की मर्तयों का तो पता नहीं पर स्थंभनतीर्थ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा सांप्रतकाल में भी विद्यमान है और उस प्रतिमा के पिछले भाग में शिलालेख भी है। यथाः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org